Sunday 24 April 2022

संग्राम

 पता नहीं कितनी कसौटीयां और कितने इम्तिहान है ,

जीवन जीवन सा है या कोई युद्ध है संग्राम है,


तमाशा

 ये तो सच है कि भगवान झटके देते है कभी कभी अनगिनत,

कभी सपने शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाते है,

कभी मुस्कुराते हुए चेहरे पल भर मे आंसुओं कि बाढ़ मे बदल जाते है,

कभी कभी अपने अपनो से इतनी दूर निकल जाते है जहां ना आवाज जाती है ,ना ख़ामोशी

ये जनम वो जनम ,अच्छे कर्म बुरे कर्म ,

हाथों कि लकीरें, माथे कि लकीरें,

मेरी तक़दीर ,तेरी तकदीर,

किसने देखा है आने वाला कल ,

पर क्या ये वक़्त जो थम गया बरसो से सिर्फ अपने लिए ,

ऐसा कौन सा जनम था वो जहां के कर्ज यहां तक चलें आए,

इस जनम का तो याद नहीं ऐसा कौन सा कर्म था वो जिसकी सजा आज तक पूरी ना हुई ,

सोच और समझ से परे हम ने किया क्या जो हमसे रास्ते ही छूट गए,

अपने जो नाम के ही अपने थे उनके भी गर्दिश मे हाथ ही छूट गए,

लोग समझते है हम ज़िंदा है आज तक कुछ मौत ऐसी भी होती है जिनमें साँसे नहीं जाती ,

ये वो मौत है जिसमें शरीर ख़ाक नहीं होता चिता पे नहीं सोता ,

मरने वाले को तो फिर भी सुकून मिल गया होता है ये तो वो मौत है जहां इंसान जिंदा ही मर गया होता है,

रिश्तों के तमाशे मे भावनांए दफ्न हो गई,

ऊधेर बुन और कसमकश मे जीवन अपना अस्तित्व खो गई 

Thursday 14 April 2022

जिंदगी की आजमाईश

 जिंदगी तु मुझे हर बारी क्यूँ आजमाने चली आती है,

जब भी जीने की कोशिश करती हूँ तू सताने चली आती है,

छोड़ दे ना अकेला मुझे क्यूँ हर बारी एक नया ख्वाब दिखाने चली आती है,

दुनिया के छलावे से जब भी खुद को समेट के खड़ा करती हूँ तू मुझे फिर उलझाने चली आती है,

साँसे है चल रही है वक़्त है गुजर रहा है क्यूँ हर बारी तू अपनेपन का स्वांग रचाने चली आती है,

चुपचाप ही तो हूँ किसी का क्या लेती क्यूँ हर बारी तू मुझे भूला हुआ सब याद कराने चली आती है,

अब मुस्कुराने की हिम्मत भी ना होती मेरी क्यूँ की तू हर बारी आंसुओं कि चादर मुझे तोहफे मे देने चली आती है ........................................................