Wednesday 29 May 2019

दिलासा


ना किसी से आश कोई,
न कोई उम्मीद,
ना कोई मेरा आपना,
ना साधु, ना फ़कीर,
रैनबसेरा दुनिया है ,
दो पल यहां निवास,
मुझे रहन दो तनहा ही ,
नही बनना किसी का खास..........

Tuesday 21 May 2019

ख्वाब

वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें थी खुली पर हम ख्वाब में थे,
लाखों सवाल थे पर हम भावनाओं के ज्वार मे थे,
जी गये थे उस सपने को अपना समझ कर जिसकी कोई पहचान नही थी,
कोई अस्तित्व नही था,
समुंदर की लहरों की तरह बहे जा रहे थे कोई किनारा नही था पर इतरा रहे थे,
खुद को भूल के उस सपने को जिए जा रहे थे,
ये कैसी मनोस्थिति थी विचार से परे,
पता ही नही कौन सी दिशा में बहे,
पर फिर भी वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें खुली थी पर वो ख्वाब तोडना नही चाहते थे,
मन के भवर में कोई नांव छोड़ना नही चाहते थे,
बस जी रहे थे वो एक सपना,
लगा मानो जी गये हो पूरी उम्र उसमे

जो अपना तो नही था ,
पर था तो मेरी आँखों मे बसा एक अपना मेरा सपना,
वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना...................

नकाब

खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है,
परते दर परते कितनी गहराई है,
आज तक आवाज भी न आयी है,
खुद को खुरचना आसान है,
लोगो के नकाब उतारना मुश्किल है,
पता नही क्या सच और क्या झूठ है,
लोगो को पहचानना मुश्किल है,
खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है...................

Sunday 19 May 2019

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं,
जो किसी ने न कही हो मुंहजबानी लिखते हैं,
जिसमे न द्वंद हो न छन्द हो,
ना प्रीत हो न गीत हो,
न जीवन की हो सच्चाई,
ना कोई झूठा मीत हो,

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं -2
जिसमे न दर्द हो न दुआ हो,
न मान हो न अपमान हो,
न स्वाभिमान हो, न अभिमान हो

चलो आज कोई कहानी लिखते है-2


हर हर महादेव

हर हर कर के हर लियो मेरे राग और द्वेष,
हमरे मन के सब विकार और सभी क्लेश
न हमपे है बुद्धि बल और न तुम जैसा त्याग,
हम जैसे दीनन का प्रभु ना करना तुम परित्याग,
मतलब के सब मित्र हैं,और सुखन के यार,
तेरी माया से रचित झणभंगुर संसार,
तेरे हाथ ही डोर है, तूही है भरतार,
मेरी जीवन की नावं के बनियो तारणहार


हर हर महादेव

Saturday 11 May 2019

जमाना

कोई अपना नही जमाने में,
सब व्यस्त है एक दूजे को आजमाने मे,
कोई लगा किसी को गिराने में,
तो कोई लगा किसी का नामो निशान मिटाने मे,
सब व्यस्त है आजकल के जमाने मे,
कोई नही आता गिरो को उठाने को,
हर कोई बस लगा  h अपनी जगह पाने को........अंजलि
   

गुबार

बहुत दिनों से भरा ये गुबार अब फूटा,
किसी के लिए  सिर्फ शब्द हमारे लिए ये भार अब फूटा,
कोई समझे चाहे न समझे मुझे ,
मेरे अपने विचारों का प्रहार अब फूटा...............
                                               अंजलि

बहरूपिये

मन पे बोझ रखके नही जी सकते हम ,
आँशु ख़ुशी और गम के सब पी सकते हम,
वक़्त ने हमको  सब सहने की ताकत दी है,
ईश्वर ने हमे सब कहने की हिम्मत दी है,
जितने सबक जिंदगी ने सिखाये है हमे,
जिंदगी ने ना जाने कितने दांव   खेले है,
बहुत सहा, बहुत समझा बहुत देखी दुनिया,
यही लगा क्या हम ही दुनिया से अलबेले हैं,
लोग दूसरों का लहूँ पी के भी आज जिन्दा है,
मर गयी इंसानियत पर नही शर्मिंदा है,
गिद्द (पंछी)दुनिया में आज कम क्यों हुए,
उसका कारण क्योंकि इंसान ही गिद्द बन बैठा,
मरे हुए का भी जो मांस तक न छोड़ें वो कहाँ से इंसान कहलाने के काबिल हैं,
यही दुनिया है यहां सभी जीते हैं,
मुखोटे पहने हुए तमाम बहरूपिये है,
कैसे किसका नकाब उतरेगा,
कौन जाने कौन क्या निकलेगा??

                 अंजलि

मेरी नजर

वाहय दुनिया मुझे लुभाये भले ,
मेरे पैरों में अब भी बेड़ी हैं,
मैंने खुद को खुला नही छोड़ा,
जंजीर आज भी उतनी भारी पहनी है,
खुद को वापिस ले सकूँ दुनिया के तमाशे से,
खुद को संभाल सकूँ खुद से ही तराश सकूँ,
जरुरी नही है हर शख्श हम को पहचाने ,
हम अकेले ही सही हमको कोई ना जाने,
जैसे भी हैं हम खुद में जिन्दा हैं,
आत्मसंम्मान है हम्मे नही शर्मिंदा है,
नजरे उठा करके खुद को देख सकते है,
सर उठा के मुश्किलों का सामना कर सकते हैं,
सच है तो दुनिया से उलझ सकते हैं,
अपनी बातों को बेबाक कह सकते हैं,
खुद को जाने दुनिया को समझ सकते है.......

आजमाईश

                        
                         
पहचान और आजमाईश मे फर्क होता है,
तराजु पे खड़ा इंसान खुद को क्या समझे,
सामने वाले के दिल में क्या होता हैं,
तोल के सामान बेचेगा ,
कीमत लेके किसी को फेकेगा ,
उसके लिए मोल नही उसका कुछ ,
बस कुछ तौल और उसका ईमान सिर्फ पैसा है,
कौन जानेगा उसके मन की जो बिक गया बस जिसकी कोई कदर ही नही,

जिंदगी एक किताब




कदम जो आगे बढ़ जाए उनको मोड़ना मुश्किल होता है,
सही गलत के तराजु में तोलना मुश्किल होता है,
खुली किताब बनके जीवन सरल तो बन सकता है पर अक्सर उस किताब को जोड़ना मुश्किल होता हैं,
कुछ भाव कुछ अभाव जीवन का हिस्सा सही ,
जीवन अपना हैं किसी के मनोरंजन का हिस्सा नही ,
उड़ते हुए पन्ने हवा की चाल नही देखते बस उड़ जाया करते है,
बस या बेबस कही उलझे तो कही फट जाया करते है,
वापिस वो नही आते उस किताब का हिस्सा बनने ,
जरुरी है किताब बंद ही रहे जो कुछ अनकहा है वो उसी मे रहे,
यूँ तो कुछ भी नही हैं खास पर मेरा अपना हैं,
जो गुजर गया अच्छा हो या बुरा मेरा ही तो सपना हैं,
चोट खाने से डरते है तो संभल जाना अच्छा ,
अपने कदमो को रोक के ठहर जाना अच्छा,
पन्ने आँशु से न कही भीग जाए ,
जिंदगी से रूठ के कहि न गल जाए ,
वक़्त की धूप से धुंधले कही न पड़ जाए ,