दिवाली ख़ुशी का और रोशनी का त्यौहार हैं | क्या इसमें पटाखों की आग जरुरी हैं हजारों रुपये खर्च करके विनाशकारी सामानों को खरीदना क्या समझदारी हैं | पटाखों के रूप में एक तरफ तो हम अपने पैसो में आग लगते हैं और दूसरी तरफ शोर और धुएं से अपने आसपास के लोगो और वातावरण और अपने आप को भी हानि पहुचाते हैं | दिवाली रोशनी का पर्व हैं या धमाको का क्या बिना धमाको के खुशियाँ जाहिर नही की जा सकती हैं | इन प्रदूषक धमाको को करके हम क्या दिखाना चाहते हैं सामाजिक हैसियत का एक नाटक की किसने कितने ज्यादा पैसो में आग लगाई | इस होड़ में किसने किस्से ज्यादा से ज्यादा अपने आप को और दुसरो को नुक्सान पहुचाया | जिस चीज के उपयोग से हर हाल में सिर्फ हानि ही सुनिश्यित हैं तो उसका उपयोग करना सिर्फ बेवकूफी मात्र ही हैं | जो पैसे हम पटाखों में आग लगाकर बर्बाद करते हैं | क्या उन पैसो को गरीबो पर खर्च नही कर सकते जिससे वो भी दिवाली में थोड़ी खुशियाँ मना सके |
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