हर एक शख्स जो हमसे रुबरु हुआ वो कुछ ना कुछ हासिल ही करने आए, हम बेमतलब सबको अपना मान बैठे , हमें हमेशा एक फरेब एक टीस ना मिटने वाला दर्द ही हासिल हुआ ,ना बदल पाए हम खुद को फिर भी एक बचपना जो हमने बड़े होने तक ना छोड़ा, ना जाने मरने के बाद ही छूटेगा ये अब तब तक और कितने दर्द हासिल होंगे, मन से सोचने का काम कब बंद होगा ,कब हम खुद से खुद मे शामिल होंगे.................................................................................
No comments:
Post a Comment