रास्ते भर हवा की सरसराहट कितनी आवाज अलग सी धुन , अलग सी महक, अलग अंदाज, चाहे न चाहे वो अपने होने का अपने वजूद का एहसास कराती है ,बताती है इस कायनात में अकेला कोई नही मै हूँ लगती बेमुल्य पर हूँ बहुमूल्य मेरे बिना जीवन यूँ जैसे बिना आत्मा का शरीर , मैं एकदम सरल ,निश्छल, निष्कपट,अनवरत प्रवाहमयी मैं वो प्राण वायु जो कभी प्राण दे के जनम का रूप धारण करने वाली और कभी प्राण हर के मृत्यु का रूप धारण करके निष्प्राण कर देने वाली..................
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