मुस्कुराहटो में भी आंसुओ की आहट हैं ,
ये निगाह उनको छिपाने की कोशिशो में हैं ,
कब तलक छिपेगा गम का दरिया ,
वो तो अब पलकों के किनारों पर हैं
आखें नम हो तो मुस्कराहट कैसी ,
दिल का दर्द चेहरे की रहगुजर में हैं
पनाह मिलती नही जहाँ में कही पर इसको ,
ये तो दरिया की तरह बहने की कोशिशो में हैं |
निगाह इसको भला कब तलक छुपाएगी,
झलझला कर बहेगा यह एक दिन
तूफ़ान कब बंध सका सहिलो से हैं ,
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I like your post
Thanx
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