कांच के चमचमाते से टुकड़े हीरे नही बन सकते,
ठीक वैसे ही जैसे दूसरो के लिए बनाई हुई बातें खुद पे लागू नहीं कर सकते,
बड़ी ही अच्छी लगती है कुछ बातें पर सिर्फ बातों में ही क्योंकि वो होती भी सिर्फ बातें ही है,
जब वही बातें उसी इंसान पे परखने लगो तो चुभने लगती है,
सच्चाई तब तक सच्ची लगती है जब तक दूसरी तरफ से छिपी रहे और एकतरफा हो,
खुद पे बात आती है तो सच्चाई के मायने ही बदल जाते है...........
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