Monday, 10 June 2019

सीमाएं

बचपन से ही कुछ सीमाएं तय की जाती है लड़कियों की , मान की ,सम्मान की, इज्जत की, इन्हें बेड़ियां ही कहेंगे आज के लोग पर ये बेड़ियां नही उस परिवार की आन है जहां जन्मी हो लड़की, ये आन आप की जिम्मेदारी तब बनती है जब आप के सर पे आधार(पिता का हाथ) ना हो, एक लड़की उस दिन अपनी जिम्मेवारी खुद अपने काँधे रखती है, जब उसे कोई टोकने वाला ना हो, स्वतंत्रता की भी सीमाए खुद ही तय करनी पड़ती है और बंदिशों की भी, अपने संस्कारो की भी और दुनिया की उँगलियों को उठ्ने से पहले तोड़ने की भी , ये सिद्धान्त खोखले हो सकते है अत्याधुनिक वर्तमान युग के लिए पर ये कभी असत्य नही हो सकते, बंदिशों के आगे भी जहान है ,खुला आसमान है, निर्द्वंद स्वछन्द पर ये स्वतन्त्रता उतनी ही स्वतंत्र है जितनी पानी खींचने वाली ड़ोर , ड़ोर के बिना कुँए से जल निकालना मुमकिन नही ,
 के  , उसी तरह बिना बंदिशो के निर्द्वन्द संसार में मान की उम्मीद करना भी सिर्फ एक कल्पना मात्र हैं/

Tuesday, 4 June 2019

व्याख्या

भरोसा
भ- भावनाओ का
रो-रोष रहित
सा-साथ

विश्वास
वि-विशेष
श्वा-साँसों का
स- संकलन 

दोनों का स्थान गर एक बार डगमगाया तो जिंदगी बोझ और साँसे घुटन बन के रह जाती है
                                                 अंजलि 

Wednesday, 29 May 2019

दिलासा


ना किसी से आश कोई,
न कोई उम्मीद,
ना कोई मेरा आपना,
ना साधु, ना फ़कीर,
रैनबसेरा दुनिया है ,
दो पल यहां निवास,
मुझे रहन दो तनहा ही ,
नही बनना किसी का खास..........

Tuesday, 21 May 2019

ख्वाब

वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें थी खुली पर हम ख्वाब में थे,
लाखों सवाल थे पर हम भावनाओं के ज्वार मे थे,
जी गये थे उस सपने को अपना समझ कर जिसकी कोई पहचान नही थी,
कोई अस्तित्व नही था,
समुंदर की लहरों की तरह बहे जा रहे थे कोई किनारा नही था पर इतरा रहे थे,
खुद को भूल के उस सपने को जिए जा रहे थे,
ये कैसी मनोस्थिति थी विचार से परे,
पता ही नही कौन सी दिशा में बहे,
पर फिर भी वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें खुली थी पर वो ख्वाब तोडना नही चाहते थे,
मन के भवर में कोई नांव छोड़ना नही चाहते थे,
बस जी रहे थे वो एक सपना,
लगा मानो जी गये हो पूरी उम्र उसमे

जो अपना तो नही था ,
पर था तो मेरी आँखों मे बसा एक अपना मेरा सपना,
वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना...................

नकाब

खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है,
परते दर परते कितनी गहराई है,
आज तक आवाज भी न आयी है,
खुद को खुरचना आसान है,
लोगो के नकाब उतारना मुश्किल है,
पता नही क्या सच और क्या झूठ है,
लोगो को पहचानना मुश्किल है,
खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है...................

Sunday, 19 May 2019

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं,
जो किसी ने न कही हो मुंहजबानी लिखते हैं,
जिसमे न द्वंद हो न छन्द हो,
ना प्रीत हो न गीत हो,
न जीवन की हो सच्चाई,
ना कोई झूठा मीत हो,

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं -2
जिसमे न दर्द हो न दुआ हो,
न मान हो न अपमान हो,
न स्वाभिमान हो, न अभिमान हो

चलो आज कोई कहानी लिखते है-2


हर हर महादेव

हर हर कर के हर लियो मेरे राग और द्वेष,
हमरे मन के सब विकार और सभी क्लेश
न हमपे है बुद्धि बल और न तुम जैसा त्याग,
हम जैसे दीनन का प्रभु ना करना तुम परित्याग,
मतलब के सब मित्र हैं,और सुखन के यार,
तेरी माया से रचित झणभंगुर संसार,
तेरे हाथ ही डोर है, तूही है भरतार,
मेरी जीवन की नावं के बनियो तारणहार


हर हर महादेव

Saturday, 11 May 2019

जमाना

कोई अपना नही जमाने में,
सब व्यस्त है एक दूजे को आजमाने मे,
कोई लगा किसी को गिराने में,
तो कोई लगा किसी का नामो निशान मिटाने मे,
सब व्यस्त है आजकल के जमाने मे,
कोई नही आता गिरो को उठाने को,
हर कोई बस लगा  h अपनी जगह पाने को........अंजलि
   

गुबार

बहुत दिनों से भरा ये गुबार अब फूटा,
किसी के लिए  सिर्फ शब्द हमारे लिए ये भार अब फूटा,
कोई समझे चाहे न समझे मुझे ,
मेरे अपने विचारों का प्रहार अब फूटा...............
                                               अंजलि

बहरूपिये

मन पे बोझ रखके नही जी सकते हम ,
आँशु ख़ुशी और गम के सब पी सकते हम,
वक़्त ने हमको  सब सहने की ताकत दी है,
ईश्वर ने हमे सब कहने की हिम्मत दी है,
जितने सबक जिंदगी ने सिखाये है हमे,
जिंदगी ने ना जाने कितने दांव   खेले है,
बहुत सहा, बहुत समझा बहुत देखी दुनिया,
यही लगा क्या हम ही दुनिया से अलबेले हैं,
लोग दूसरों का लहूँ पी के भी आज जिन्दा है,
मर गयी इंसानियत पर नही शर्मिंदा है,
गिद्द (पंछी)दुनिया में आज कम क्यों हुए,
उसका कारण क्योंकि इंसान ही गिद्द बन बैठा,
मरे हुए का भी जो मांस तक न छोड़ें वो कहाँ से इंसान कहलाने के काबिल हैं,
यही दुनिया है यहां सभी जीते हैं,
मुखोटे पहने हुए तमाम बहरूपिये है,
कैसे किसका नकाब उतरेगा,
कौन जाने कौन क्या निकलेगा??

                 अंजलि

मेरी नजर

वाहय दुनिया मुझे लुभाये भले ,
मेरे पैरों में अब भी बेड़ी हैं,
मैंने खुद को खुला नही छोड़ा,
जंजीर आज भी उतनी भारी पहनी है,
खुद को वापिस ले सकूँ दुनिया के तमाशे से,
खुद को संभाल सकूँ खुद से ही तराश सकूँ,
जरुरी नही है हर शख्श हम को पहचाने ,
हम अकेले ही सही हमको कोई ना जाने,
जैसे भी हैं हम खुद में जिन्दा हैं,
आत्मसंम्मान है हम्मे नही शर्मिंदा है,
नजरे उठा करके खुद को देख सकते है,
सर उठा के मुश्किलों का सामना कर सकते हैं,
सच है तो दुनिया से उलझ सकते हैं,
अपनी बातों को बेबाक कह सकते हैं,
खुद को जाने दुनिया को समझ सकते है.......

आजमाईश

                        
                         
पहचान और आजमाईश मे फर्क होता है,
तराजु पे खड़ा इंसान खुद को क्या समझे,
सामने वाले के दिल में क्या होता हैं,
तोल के सामान बेचेगा ,
कीमत लेके किसी को फेकेगा ,
उसके लिए मोल नही उसका कुछ ,
बस कुछ तौल और उसका ईमान सिर्फ पैसा है,
कौन जानेगा उसके मन की जो बिक गया बस जिसकी कोई कदर ही नही,

जिंदगी एक किताब




कदम जो आगे बढ़ जाए उनको मोड़ना मुश्किल होता है,
सही गलत के तराजु में तोलना मुश्किल होता है,
खुली किताब बनके जीवन सरल तो बन सकता है पर अक्सर उस किताब को जोड़ना मुश्किल होता हैं,
कुछ भाव कुछ अभाव जीवन का हिस्सा सही ,
जीवन अपना हैं किसी के मनोरंजन का हिस्सा नही ,
उड़ते हुए पन्ने हवा की चाल नही देखते बस उड़ जाया करते है,
बस या बेबस कही उलझे तो कही फट जाया करते है,
वापिस वो नही आते उस किताब का हिस्सा बनने ,
जरुरी है किताब बंद ही रहे जो कुछ अनकहा है वो उसी मे रहे,
यूँ तो कुछ भी नही हैं खास पर मेरा अपना हैं,
जो गुजर गया अच्छा हो या बुरा मेरा ही तो सपना हैं,
चोट खाने से डरते है तो संभल जाना अच्छा ,
अपने कदमो को रोक के ठहर जाना अच्छा,
पन्ने आँशु से न कही भीग जाए ,
जिंदगी से रूठ के कहि न गल जाए ,
वक़्त की धूप से धुंधले कही न पड़ जाए ,

Tuesday, 26 February 2019

24-02-2019 श्रीदामु तुम्हारी याद साथ रही आँखों मे नींद नही आयी तुम्हारी सूरत दिखती रही, मन बड़ा भारी भारी कुछ भी अच्छा नही लग रहा हैं , कमरा खाली , रसोई खाली तुम्हारी दूध की कटोरी और बिस्कुट  तुम्हे याद कर रहे है कही से आ जाओ ना सब सूना पड़ा तुम्हारा बॉक्स तुम्हारा कम्बल तुम्हारी तकिया सब बुला रही हैं तुम्हे, चलो साथ में धुप खाने चलते हैं, चलो घूमने चलते हैं श्रीदामु गाडी ख़ाली हैं तुम्हारे लिए मम्मी रो रही हैं उनकी गोद भी खाली पड़ी हैं फूलो जैसे नरम नरम पाँव वाला प्यारी सी सूरत वाला बात बात पे रुठनेवाला मेरा श्रीदामु कहा खो गया हैं,  भैया भी अपने कमरे में सोने नही गया तू जो नही था तुझे goodnight कहे बिना किसी को नींद नही आ रही है , तुम आ जाओ बस काश भगवान् के पास जाके तुम्हे वापिस ला सकते तो छीन लाते, इतनी गहरी नींद आयी है तुम्हे good good wala good morning shreedamu bhaiya ji uth uth jaao bhaiya dekho subah ho gyi 😢😢 तुम्हारे बिना ये पहली सुबह हैं, और अब रात दूसरी हैं कल तुम सोये ही नही आज में गुडमार्निंग नही बोल पायी , कल goodnight किये बिना ही चले गए तुम  कैसे  goodnight khte the hum log goodnight goodnight goodnight shreedamu raat ho gyi so jaa bacche , रात इतनी लंबी हो जायेगी सोचा नही था जाग जाओ बाबु ,श्रीदामु आ जाओ श्रीदामु श्रीदामु तेरा प्यारा प्यारा मुँह आ जा प्यारे श्रीदामु😢😢😢😢😢😢😢 मन बहुत उदास हैं तुम्हारे जाने के बाद लग रहा हैं  हम तुम्हारे लिए ही जी रहे थे क्या या तुम्हारे प्यार से बंधे थे आज वो बंधन याद रह हैं श्रीदामु तु हमे बहुत  सता रहा हैं, आ जा ना टेढे मेढ़े कूदता फाड़ता सब से लड़ा के आ जा न वापिस miss u shreedamu क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा काश मेरे श्रीदामु तुम्हे वापिस ला सकते फिर से प्यार करते और तुम्हारा प्यार पा सकते नही पता हमे तुम कहाँ खो गए कभी न जागनेवाली नींद में क्यों सो गए हो पर बस इतनी विनती हैं मेरी भगवान् से मेरे श्रीदामु को प्यार से रखना जहां रखना उसे ढेर सारी खुशियाँ मिलनी चाहिए, घूमने को गाडी जरूर देना उसे भगवान् उसको राजा बना के रखना वो कोई राजा ही था सबके दिलो पे राज करता रहा आज खाली कर गया हम सबको .....................

आज चार दिन हो गए श्रीदामु पर घर आज भी वीरान हैं सूनापन आज भी वही है ,मन अभी भी भारी भारी हैं , तेरी याद अब तलक जारी है , श्रीदामु तेरी गाडी   ढ़की आज पर तू देखने नही आया बैठने की जिद्द भी नही की तूने न घूमने के लिए दौड़ के मम्मी को मनाया अच्छा नही लगा तेरा यूँ रूठ जाना हम सब को यूँ तनहा छोड़ जाना रसोई का वो कोना आज भी खाली हैं आज भी ऐसा लगता है कि तू आएगा फिर से अपने नन्हे नन्हे पाँव को दूध की कटोरी मे डाल के मुझ पे छीटे डालेगा, तुझे चिढ़ाने पे अपने दांत मेरे हाथों में चुभोएगा, पर नही तू चला गया और जानेवाले वापिस नही आया करते सिर्फ सताती है उनकी यादें और तू यूँ जो अचानक चला गया कभी न कभी कही न कही इस जनम न सही अगले जन्म ही तू मिला तो बहुत लड़ाई होगी तुमसे

Monday, 25 February 2019

श्रीदामा की यादें

ये कैसा रिश्ता साँसों का देह से साँस निकल जाते ही सिर्फ लाश शेष,
चलता विरता जीव निकल गए प्राण बचे बस यादों के अवशेष ,
काश पता होती ये बात सबको की किसको कितना जीना हैं,
साथ छोड़ के हाथ निकल जाता है हर लम्हा,
कह नही सकते तेरा जाना कर गया कितना तन्हा,
सब कुछ तो हैं वही,वही दिन और वही है रात,
बस तू साथ नही रह गया,रह गयी साथ तुम्हारी बात,
यादों के इस जहाज का अब डूबना मुश्किल है,
मृत्यु अटल सत्य है पर स्वीकारना मुश्किल है,
यादें इतनी है कि खुद को उबारना मुश्किल हैं,
कुछ लोग दुनिया के लिए मामूली हो सकते हैं,
पर किसी के लिए वो पूरी दुनिया होते हैं....................



Sunday, 25 February 2018

शख्सियतें

कुछ नाम है जिनकी हस्ती हैं,
कुछ पे ये दुनिया हँसती हैं,
कुछ ऐसे हैं जो मिट ना पाये,
कुछ ऐसे हैं जो गुमनाम से है,
कुछ इंतिहासो का हिस्सा है,
कुछ केवल कोरा किस्सा हैं,
कुछ वक़्त के हाथों बिक न सके,
कुछ ईमान के रहते झुक न सके,
नाम उनका भले गुमनाम सही उनका ईमान तो जिन्दा हैं,
वो वक़्त भी उनसे जिन्दा था ये लम्हा भी उनसे जिन्दा हैं,
उनकी शहादत का किस्सा अब भी जेहन में जिन्दा हैं,
इंसान जो हक़ का लड़ न सका अब तक वही शर्मिंदा हैं,
इतिहास तो कल भी ठहरा था ,
इतिहास तो अब भी ठहरा हैं,

Saturday, 6 May 2017

हमारा गर्व......हमारा गौरव ....हमारे रक्षक देशभक्त सिपाही

गर्व से गर्दन हम उठाते हैं तब,
जब सरहदों पे लोग जान गवांते है,
अपने वतन की मान रखने को ,
वो अपना सर्वश्व लूटाते हैं,
नही हैं मोल कुछ इनका उनकी नजर में जो घर पे बैठकर सिर्फ अपनी जुबान चलाते है,
सीने पे लगनेवाली गोली मोहलत नही देती उन्हें कुछ सोचने की,
मौत सर पे खड़ी होती हैं हर घड़ी और वो सीमाओं में खड़े भी सीमाओं में बंधे .......

क्या हैं समाज ज्ञान ?????😢

हम सबको बचपन में moral science पढ़ायी जाती है,
बड़ी बड़ी बातें सिखायी जाती हैं,
पर बड़े होने पे हमे उन morals पे चलने की स्वतंत्रता नही मिलती हैं,
वो बाते सिर्फ पढने तक ही रहती है जीवन में उतारी नही जाती,
सभी नियम उलटे से बेउत्तर ,बेमायने से लगते हैं,
जब गिरते हुए को संभालने की जगह उसे कुचलकर निकल जाने को हम समाज की रीत कहते हैं,
यही होता हैं सब ऐसा ही करते हैं ,
गलत बात को भी ठीक कहते हैं???
किसी की मदद करने को जुर्म समझा जाता हैं,
मरते हुए को बचाने की नही मरता  छोड़ जाने की सलाह दी जाती हैं,
फिर क्यों society science हमे बचपन में पढ़ाई नही जाती,
क्यों बेवकूफ समझा जाता हैं उन्हें जो दूसरों के काम आते हैं,
भले ही नही मिलता कुछ पर आत्मसंतुष्टि तो पाते हैं..............

Thursday, 27 April 2017

क्या हम हिंदुस्तान में ही रहते हैं????????

हिंदुस्तान का नाम बदल के लोग इंग्लिश तान क्यों नही कर देते है, सब को जब इतनी इंग्लिश पसंद हैं तो हिंदी भी इंग्लिश मैं क्यों नही बोल लेते , माना कि वो एक भाषा हैं , पर क्या हम विदेशी हैं, जो हर समय सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाला सभ्य कहलाये, और हिंदी बोलने वाला पिछड़ा हुआ और देहाती , ये कहा कि स्वतंत्रता हैं कि हम अपने ही हिंदुस्तान में रह कर हिंदी नही बोल सकते , क्यों बंदर बनके सिर्फ नक़ल ही करते हैं सब? क्या अपनी कोई पहचान हैं ही नही , अपनी मातृभाषा का अपमान स्वयं ही क्यों क्या अपनी भाषा का कोई मूल्य कोई सम्मान नही हैं??????

अपने बच्चो को इंग्लिश माध्य्म में सभी पढ़ाते हैं क्यों सिर्फ इंग्लिश ही उन्हें स्मार्ट बना सकती हैं, फिर जब बच्चे विदेशियों जैसा हाल करते हैं तो क्यों बुरा लगता हैं, वो भी अपने पिछड़े हुए हिंदुस्तानी माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाते हैं , फिर क्यों बुरा लगता हैं, अब अंग्रेजी सीखना और अंग्रेज बनाने में हम फर्क ही भूल गए हैं तो फिर अपने हिंदुस्तानी संस्कारो का रोना क्यों रोते हैं बाद में जब बच्चा बना इंग्लिशतानी तो क्यों कदर करेगा अपने रिश्तों की, अपने मूल्यों की , बड़ो के मान की, आदर की क्यों जैसा आप उन्हें बना रहे हैं वो वैसा ही तो कर रहे हैं न ??????

Sunday, 23 April 2017

नन्ही कश्तियाँ............

बारिश की बूंदे हमने भी खेली थी ,
कागज़ के चंद टुकडो से कश्तियाँ बनायीं थी ,
कुछ भीग के डूब गयी ,
कुछ किनारे पर ठहर गयी ,
कुछ दो कदम ठहरी भी ,
पर ये खेल बस पल दो पल का ही था ,
२ पल मन को बहलाने का खेल ,
हँसाने -रुलाने का खेल ,
पल २ पल में ही जब बदल जाते हैं सारे मंजर ,
तो ज़िन्दगी भी लगने लगती हैं सिर्फ एक खेल ,
एक ऐसा खेल जिसके खिलाडी तो हम हैं ,
पर चलानेवाला कोई और हैं ,
उस काठ के घोड़े की तरह की तरह जो चलता भी हैं ,
और पहुँचता भी कही नही |