ना किसी से आश कोई,
न कोई उम्मीद,
ना कोई मेरा आपना,
ना साधु, ना फ़कीर,
रैनबसेरा दुनिया है ,
दो पल यहां निवास,
मुझे रहन दो तनहा ही ,
नही बनना किसी का खास..........
गर्व से गर्दन हम उठाते हैं तब,
जब सरहदों पे लोग जान गवांते है,
अपने वतन की मान रखने को ,
वो अपना सर्वश्व लूटाते हैं,
नही हैं मोल कुछ इनका उनकी नजर में जो घर पे बैठकर सिर्फ अपनी जुबान चलाते है,
सीने पे लगनेवाली गोली मोहलत नही देती उन्हें कुछ सोचने की,
मौत सर पे खड़ी होती हैं हर घड़ी और वो सीमाओं में खड़े भी सीमाओं में बंधे .......
हम सबको बचपन में moral science पढ़ायी जाती है,
बड़ी बड़ी बातें सिखायी जाती हैं,
पर बड़े होने पे हमे उन morals पे चलने की स्वतंत्रता नही मिलती हैं,
वो बाते सिर्फ पढने तक ही रहती है जीवन में उतारी नही जाती,
सभी नियम उलटे से बेउत्तर ,बेमायने से लगते हैं,
जब गिरते हुए को संभालने की जगह उसे कुचलकर निकल जाने को हम समाज की रीत कहते हैं,
यही होता हैं सब ऐसा ही करते हैं ,
गलत बात को भी ठीक कहते हैं???
किसी की मदद करने को जुर्म समझा जाता हैं,
मरते हुए को बचाने की नही मरता छोड़ जाने की सलाह दी जाती हैं,
फिर क्यों society science हमे बचपन में पढ़ाई नही जाती,
क्यों बेवकूफ समझा जाता हैं उन्हें जो दूसरों के काम आते हैं,
भले ही नही मिलता कुछ पर आत्मसंतुष्टि तो पाते हैं..............
हिंदुस्तान का नाम बदल के लोग इंग्लिश तान क्यों नही कर देते है, सब को जब इतनी इंग्लिश पसंद हैं तो हिंदी भी इंग्लिश मैं क्यों नही बोल लेते , माना कि वो एक भाषा हैं , पर क्या हम विदेशी हैं, जो हर समय सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाला सभ्य कहलाये, और हिंदी बोलने वाला पिछड़ा हुआ और देहाती , ये कहा कि स्वतंत्रता हैं कि हम अपने ही हिंदुस्तान में रह कर हिंदी नही बोल सकते , क्यों बंदर बनके सिर्फ नक़ल ही करते हैं सब? क्या अपनी कोई पहचान हैं ही नही , अपनी मातृभाषा का अपमान स्वयं ही क्यों क्या अपनी भाषा का कोई मूल्य कोई सम्मान नही हैं??????
अपने बच्चो को इंग्लिश माध्य्म में सभी पढ़ाते हैं क्यों सिर्फ इंग्लिश ही उन्हें स्मार्ट बना सकती हैं, फिर जब बच्चे विदेशियों जैसा हाल करते हैं तो क्यों बुरा लगता हैं, वो भी अपने पिछड़े हुए हिंदुस्तानी माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाते हैं , फिर क्यों बुरा लगता हैं, अब अंग्रेजी सीखना और अंग्रेज बनाने में हम फर्क ही भूल गए हैं तो फिर अपने हिंदुस्तानी संस्कारो का रोना क्यों रोते हैं बाद में जब बच्चा बना इंग्लिशतानी तो क्यों कदर करेगा अपने रिश्तों की, अपने मूल्यों की , बड़ो के मान की, आदर की क्यों जैसा आप उन्हें बना रहे हैं वो वैसा ही तो कर रहे हैं न ??????
बारिश की बूंदे हमने भी खेली थी ,
कागज़ के चंद टुकडो से कश्तियाँ बनायीं थी ,
कुछ भीग के डूब गयी ,
कुछ किनारे पर ठहर गयी ,
कुछ दो कदम ठहरी भी ,
पर ये खेल बस पल दो पल का ही था ,
२ पल मन को बहलाने का खेल ,
हँसाने -रुलाने का खेल ,
पल २ पल में ही जब बदल जाते हैं सारे मंजर ,
तो ज़िन्दगी भी लगने लगती हैं सिर्फ एक खेल ,
एक ऐसा खेल जिसके खिलाडी तो हम हैं ,
पर चलानेवाला कोई और हैं ,
उस काठ के घोड़े की तरह की तरह जो चलता भी हैं ,
और पहुँचता भी कही नही |
बड़ी बड़ी बातों का बड़ा बड़ा जाल,
सीधे बने लोगो की शतरंज सी चाल,
जैसी दिखे दुनिया वैसा सच्चा नही हाल,
भ् म जाल,माया जाल, रिश्तो का व्यापार,
इन सब में घिरा हैं इंसान का जीवनकाल,............
आँधियों देखते हैं तुममे भी कितना दम हैं,
चिराग आज भी तेरी ही जद में रोशन हैं,
है तू जिद्दी तो नन्हा चिराग क्या कम है,
टिकेगा वो ही जिसमे अंत तक जूझने का दमखम हैं..........................