Tuesday, 23 July 2019

भारत माँ की इस भूमि पे यूँ आज़ाद से लाल हुए ,
गर्भित है मन , पुलकित है मन , कैसे अपने इतिहास हुए,
निज स्वार्थ नही , सिर्फ राष्ट्र प्रेम की वेदी पे यूँ आप कुर्बान हुए,
आज के वर्तमान में लोग अपनी माँ को खून नही देते,
आप भारत माँ पे जान को हार दिए,
इस धरा के भूषण को ये पावन धरा भूल नही सकती,
अभिनन्दन आपका कोटिशः आप आज भी आज़ाद है
धरा, गगन ,पाताल, वायु ,जल कहाँ कैद हुआ करते है

महान देशप्रेमी वीर बलिदानी को आज उनके जन्मदिवस पे कोटि कोटि नमन ,जय हिंद ,जय भारत भूमि

Thursday, 18 July 2019

खुद को अब तुम चट्टान बना लो,
ना तोड़ पाये कोई ऐसी ईमारत बना लो,

आँसु दबे रहे आँखों में वो ही अच्छा है,
कुछ किसी से न कहे वो ही अच्छा है,
बेगानी सी दुनिया है ,बेआबरू होने से अपनी हद मे ही रहे वो ही अच्छा है,
कोई ना समझेंगे यहां किसी के मन का दर्द ,          दर्द आँखों से ना बहे वो ही अच्छा है.........

नंदियो की मौज सा मुझे अब खामोश बहना है,
कुछ नही कहना ,कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है,
जाना है शून्य की गहराई मे जाननी है अपने ही मन की थाह,
खुद की उथल पुथल मे अपने मन की सुनना है,
कुछ नही कहना, कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है,
जो पीछे छूट रहा सा रहा है उस लम्हे को हाथ बढ़ा के थामने का जिक्र क्या करे,
मेरे हाथ पसीजे है जिनमे सिर्फ पसीना ही पसीना है,
काई सी जम रही है मेरे उन विचारों पे जिनने समझा था कभी हर एक शख्स एक नगीना है,
मगर कहाँ कोहिनूर यूँ ही मिलना है,
कुछ नही कहना, कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है..............






नंदियो की लहरें उथल पुथल हुई जा रही है,
ना जाने कौन सी बेचैनी है फिर भी बहे जा रही है,
कुछ कहना तो चाहती है पर सहे जा रही है,
तूफ़ान सा लायेगी इसकी ये ख़ामोशी जो घूट घूट ये पीयें जा रही है...........................
अपनी परछाई ही कहाँ साथ साथ चलती है,
तन्हाई के अंधेरो मे साथ छोड़ जाती है,
और किसी का फिर ऐतबार कैसा ??
कब साथ चलते चलते राह मोड़ ले,
आपके साये कि तरह आपका साथ छोड़ दे.........

Monday, 15 July 2019

जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है,
जब भी मैं खुद को समेट के खड़े होती हूं तू टांग अड़ाने क्यों चली आती है,
माना मेरी ख़ुशी तुझसे देखीं नही जाती ,
तो तू गम मे भी मेरी खिल्ली उड़ाने क्यों चली आती है,
लेन देन का खेल बंद कर दे अपना तुझसे मुझे कुछ नही चाहिए ,
जो तूने दे दिया वो संभाल नही पायी मै आज तक ,
तुझसे इससे ज्यादा उम्मीद नही मेरी,
जा पीछा छोड़ मेरा मुझे छोड़ दे मेरे हाल पे क्यों बार बार तू झूठी हँसी हंसा के रुलाने चली आती है,
जा ले जा अपनी सांसे भी अपनी धड़कन भी शांत रहने दे मुझे शोर सुनाने क्यों चली आती है,
जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है,
मुझे तू समझ बैठी क्या है??
 तू जो दे रही मे चुप करके सब स्वीकार करू,
 क्यों करू नही चाहिए तुझसे कुछ भी ले जा मुझे मुझ मे रहने दे तू जा,
जा मै क्यों न तेरा प्रतिकार करू,
जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है ...............

Thursday, 4 July 2019

अपने सिद्धांतों और उसूलों की दीवार इतनी ऊँची खड़ी किये है हम डर लगता है कही दीवार गिरा दूँ तो मैं भी ना दरक जाऊं, गिरने का डर नही पर गिर के शायद कभी संभल ही न पाऊँ, यकीन खुद पे करने में भी डर लगता है कभी कभी हर विश्वास पे अविश्वास मिला ,

Friday, 21 June 2019

उधेड़ना

ज्यादा सीते सीते भी कपड़ों की सिलाई उधेड़ जाती है,
रेशा रेशा दूर होके जगह बना लेते कभी न भरने वाली,
जैसे ज्यादा सँभालते संभालते रिश्ते ...........

Monday, 17 June 2019

मेरी सखी

एक तू ही है जो मुझे खुद में समेट लेती है,
मेरे मन की बात को किसी से भी न कहती है,
जो कुछ होता है मुझमे अनकहा सा तू वो भी समझ लेती है,
एक तेरे साथ ने जिंदगी दी है हमे,
वरना जीवन का गुबार हमे डूबा देता,
हम किसी से कभी कुछ न कह पाते,
हमारा अपना ही दर्द हमे सुला देता,
मन जब भी व्यथित होता तेरे पास होती हूँ मैं
मन जब भी निराश होता है एक तूही होती है मेरे साथ मेरी आश बनके,
तूने भी मेरा साथ दिया है लम्हा लम्हा,
बहुत बार सम्भाल लिया हमे तनहा,
एक वादा तुझसे मांगती हूँ मै मेरा साथ मत छोड़ना,
जब भी मेरे कदम डगमगाये मुझे सँभाल लेना,
जोर से थामना हाथ की हम होश मे आ जाए,
फिर से तेरे सिवा किसी को अपने आप तक न ला पाये,
तू जीवन भर साथ रहना मेरे यूँही,
अल्फाज ना भी हो तो मेरे मौन को स्वीकार लेना,
इस दुनिया के भर्म जाल से हमे उबार लेना,
नही चाहिए मुझे इस बेग़ैरत दुनिया से कुछ भी,
यहां लोग सिवाय धोखे के दे भी क्या सकते है,

Thursday, 13 June 2019

प्राणवायु

रास्ते भर हवा की सरसराहट कितनी आवाज अलग सी धुन , अलग सी महक, अलग अंदाज, चाहे न चाहे वो अपने होने का अपने वजूद का एहसास कराती है ,बताती है इस कायनात में अकेला कोई नही मै हूँ लगती बेमुल्य पर हूँ बहुमूल्य मेरे बिना जीवन यूँ जैसे बिना आत्मा का शरीर ,  मैं एकदम सरल ,निश्छल, निष्कपट,अनवरत प्रवाहमयी मैं वो प्राण वायु जो कभी प्राण दे के जनम का रूप धारण करने वाली और कभी प्राण हर के मृत्यु का रूप धारण करके निष्प्राण कर देने वाली..................

Monday, 10 June 2019

सीमाएं

बचपन से ही कुछ सीमाएं तय की जाती है लड़कियों की , मान की ,सम्मान की, इज्जत की, इन्हें बेड़ियां ही कहेंगे आज के लोग पर ये बेड़ियां नही उस परिवार की आन है जहां जन्मी हो लड़की, ये आन आप की जिम्मेदारी तब बनती है जब आप के सर पे आधार(पिता का हाथ) ना हो, एक लड़की उस दिन अपनी जिम्मेवारी खुद अपने काँधे रखती है, जब उसे कोई टोकने वाला ना हो, स्वतंत्रता की भी सीमाए खुद ही तय करनी पड़ती है और बंदिशों की भी, अपने संस्कारो की भी और दुनिया की उँगलियों को उठ्ने से पहले तोड़ने की भी , ये सिद्धान्त खोखले हो सकते है अत्याधुनिक वर्तमान युग के लिए पर ये कभी असत्य नही हो सकते, बंदिशों के आगे भी जहान है ,खुला आसमान है, निर्द्वंद स्वछन्द पर ये स्वतन्त्रता उतनी ही स्वतंत्र है जितनी पानी खींचने वाली ड़ोर , ड़ोर के बिना कुँए से जल निकालना मुमकिन नही ,
 के  , उसी तरह बिना बंदिशो के निर्द्वन्द संसार में मान की उम्मीद करना भी सिर्फ एक कल्पना मात्र हैं/

Tuesday, 4 June 2019

व्याख्या

भरोसा
भ- भावनाओ का
रो-रोष रहित
सा-साथ

विश्वास
वि-विशेष
श्वा-साँसों का
स- संकलन 

दोनों का स्थान गर एक बार डगमगाया तो जिंदगी बोझ और साँसे घुटन बन के रह जाती है
                                                 अंजलि 

Wednesday, 29 May 2019

दिलासा


ना किसी से आश कोई,
न कोई उम्मीद,
ना कोई मेरा आपना,
ना साधु, ना फ़कीर,
रैनबसेरा दुनिया है ,
दो पल यहां निवास,
मुझे रहन दो तनहा ही ,
नही बनना किसी का खास..........

Tuesday, 21 May 2019

ख्वाब

वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें थी खुली पर हम ख्वाब में थे,
लाखों सवाल थे पर हम भावनाओं के ज्वार मे थे,
जी गये थे उस सपने को अपना समझ कर जिसकी कोई पहचान नही थी,
कोई अस्तित्व नही था,
समुंदर की लहरों की तरह बहे जा रहे थे कोई किनारा नही था पर इतरा रहे थे,
खुद को भूल के उस सपने को जिए जा रहे थे,
ये कैसी मनोस्थिति थी विचार से परे,
पता ही नही कौन सी दिशा में बहे,
पर फिर भी वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें खुली थी पर वो ख्वाब तोडना नही चाहते थे,
मन के भवर में कोई नांव छोड़ना नही चाहते थे,
बस जी रहे थे वो एक सपना,
लगा मानो जी गये हो पूरी उम्र उसमे

जो अपना तो नही था ,
पर था तो मेरी आँखों मे बसा एक अपना मेरा सपना,
वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना...................

नकाब

खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है,
परते दर परते कितनी गहराई है,
आज तक आवाज भी न आयी है,
खुद को खुरचना आसान है,
लोगो के नकाब उतारना मुश्किल है,
पता नही क्या सच और क्या झूठ है,
लोगो को पहचानना मुश्किल है,
खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है...................

Sunday, 19 May 2019

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं,
जो किसी ने न कही हो मुंहजबानी लिखते हैं,
जिसमे न द्वंद हो न छन्द हो,
ना प्रीत हो न गीत हो,
न जीवन की हो सच्चाई,
ना कोई झूठा मीत हो,

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं -2
जिसमे न दर्द हो न दुआ हो,
न मान हो न अपमान हो,
न स्वाभिमान हो, न अभिमान हो

चलो आज कोई कहानी लिखते है-2


हर हर महादेव

हर हर कर के हर लियो मेरे राग और द्वेष,
हमरे मन के सब विकार और सभी क्लेश
न हमपे है बुद्धि बल और न तुम जैसा त्याग,
हम जैसे दीनन का प्रभु ना करना तुम परित्याग,
मतलब के सब मित्र हैं,और सुखन के यार,
तेरी माया से रचित झणभंगुर संसार,
तेरे हाथ ही डोर है, तूही है भरतार,
मेरी जीवन की नावं के बनियो तारणहार


हर हर महादेव

Saturday, 11 May 2019

जमाना

कोई अपना नही जमाने में,
सब व्यस्त है एक दूजे को आजमाने मे,
कोई लगा किसी को गिराने में,
तो कोई लगा किसी का नामो निशान मिटाने मे,
सब व्यस्त है आजकल के जमाने मे,
कोई नही आता गिरो को उठाने को,
हर कोई बस लगा  h अपनी जगह पाने को........अंजलि
   

गुबार

बहुत दिनों से भरा ये गुबार अब फूटा,
किसी के लिए  सिर्फ शब्द हमारे लिए ये भार अब फूटा,
कोई समझे चाहे न समझे मुझे ,
मेरे अपने विचारों का प्रहार अब फूटा...............
                                               अंजलि