Sunday, 20 November 2022

जिंदगी एक रेल.......

 रेल सी लम्बी जिंदगी और बोगी जैसे जुड़े हर रिश्ते और यात्री जैसे जुड़े हर अपने ....

रेल सी जिंदगी है ,

है बड़ा लम्बा सफर,

जितने डिब्बे है जुड़े सबका अपना नंबर,

चल रहे है एक पटरी रास्ता है बस सफर,

कौन आए कौन जाए पटरियों को क्या खबर,

उच्च नीच   जाति जैसे  जुड़े एसी से जनरल ,

अपना अपना  श्रेणीक्रम है, अपना अपना मूल्य है,

यूँ तो है एक ही डगर है ,अन्तर


तो पर जरूर है,

समाज के भेदभाव जैसा रेल पे भी है असर,

सब जुड़े से दिख रहे है है सभी अलग थलग,

कि जिंदगी एक रेल सी है, है बड़ा लम्बा सफर ..

बोगी जुडती कपलिंग से बँधी रहती वेक्यूम से,

रिश्ते जुड़ते भावनाओं से बंधे रहते स्नेह से,

टूट जाते स्वार्थ से, छल से, चाल से, कपट से,दम्भ से

उतर जाते यात्री से अपने अपने मतलब से अपने अपने स्टेशन,

रास्ते है पडाव है बांधाये है सुख दुःख सी,

चलती जाती रेल का बस चलते जाना अनवरत,

कभी जीवन के अंत तक भी साथ देती पटरियां,

या कभी यूँही कहीं बोझिल हो टूट जाती सी है,

कौन आए कौन जाए पटरियों को क्या खबर,

जिंदगी एक रेल सी है ,है बड़ा लम्बा सफर ..

किसकी मंजिल है कहां तक कितना लम्बा है सफर .........................



Thursday, 12 May 2022

..........

 कभी कभी खुद को खुद ही दफनाना पड़ता है ,

अपनी जिंदगी को जीते जी मौत जैसा बनाना पड़ता है,

ख़ुशी नहीं मिलती किसी को भी ऐसा करके 

पर खुद से हार कर खुद को दिखाना पड़ता है,


Wednesday, 11 May 2022

दो कदम

 दो कदम आगे ही तो बढ़े थे ,

हम को बदल के लोग बदलने लगे ,

हंसी कि उम्मीद तो हमको कभी थी ही नहीं,

लोग आँखो मे आँसू देख के ही हंसने लगे,

दूसरों को खुश रखने को हमने खुद से ही समझौते किये,

लोग हमें जख्म दे के हमसे मुकरने लगे,

खेल नहीं हूँ मैं जो कल अपने बनने का दावा किये,

आज वो दाँव खेलने लगे ..................

Sunday, 24 April 2022

संग्राम

 पता नहीं कितनी कसौटीयां और कितने इम्तिहान है ,

जीवन जीवन सा है या कोई युद्ध है संग्राम है,


तमाशा

 ये तो सच है कि भगवान झटके देते है कभी कभी अनगिनत,

कभी सपने शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाते है,

कभी मुस्कुराते हुए चेहरे पल भर मे आंसुओं कि बाढ़ मे बदल जाते है,

कभी कभी अपने अपनो से इतनी दूर निकल जाते है जहां ना आवाज जाती है ,ना ख़ामोशी

ये जनम वो जनम ,अच्छे कर्म बुरे कर्म ,

हाथों कि लकीरें, माथे कि लकीरें,

मेरी तक़दीर ,तेरी तकदीर,

किसने देखा है आने वाला कल ,

पर क्या ये वक़्त जो थम गया बरसो से सिर्फ अपने लिए ,

ऐसा कौन सा जनम था वो जहां के कर्ज यहां तक चलें आए,

इस जनम का तो याद नहीं ऐसा कौन सा कर्म था वो जिसकी सजा आज तक पूरी ना हुई ,

सोच और समझ से परे हम ने किया क्या जो हमसे रास्ते ही छूट गए,

अपने जो नाम के ही अपने थे उनके भी गर्दिश मे हाथ ही छूट गए,

लोग समझते है हम ज़िंदा है आज तक कुछ मौत ऐसी भी होती है जिनमें साँसे नहीं जाती ,

ये वो मौत है जिसमें शरीर ख़ाक नहीं होता चिता पे नहीं सोता ,

मरने वाले को तो फिर भी सुकून मिल गया होता है ये तो वो मौत है जहां इंसान जिंदा ही मर गया होता है,

रिश्तों के तमाशे मे भावनांए दफ्न हो गई,

ऊधेर बुन और कसमकश मे जीवन अपना अस्तित्व खो गई 

Thursday, 14 April 2022

जिंदगी की आजमाईश

 जिंदगी तु मुझे हर बारी क्यूँ आजमाने चली आती है,

जब भी जीने की कोशिश करती हूँ तू सताने चली आती है,

छोड़ दे ना अकेला मुझे क्यूँ हर बारी एक नया ख्वाब दिखाने चली आती है,

दुनिया के छलावे से जब भी खुद को समेट के खड़ा करती हूँ तू मुझे फिर उलझाने चली आती है,

साँसे है चल रही है वक़्त है गुजर रहा है क्यूँ हर बारी तू अपनेपन का स्वांग रचाने चली आती है,

चुपचाप ही तो हूँ किसी का क्या लेती क्यूँ हर बारी तू मुझे भूला हुआ सब याद कराने चली आती है,

अब मुस्कुराने की हिम्मत भी ना होती मेरी क्यूँ की तू हर बारी आंसुओं कि चादर मुझे तोहफे मे देने चली आती है ........................................................



Saturday, 26 March 2022

मनो व्यथा

 कुछ बेचेनी है जो समझ नहीं आती , 

कश्मकश सी हर वक़्त छाई है, 

मुझे पता नहीं मेरा मुक्कदर,

किस मोड़ पे खड़े है हम ,

आंखों मे सिर्फ परछाई है,

कुछ सहमे कुछ डरे ,

टेढ़ी मेढी हाथों की लकीरो मे उलझें पड़े,

पता नहीं मेरी किस्मत मुझे कहां छोड़ आई है,


Thursday, 17 March 2022

बेरंग होली

जीवन मे रंग नहीं है फिर भी होली है,

हम किसी के संग नहीं है फिर भी होली है,

रिश्तों मे अब समर्पण नहीं है फिर भी होली है,

रंगों मे रंग जाने का अब मन नहीं है फिर भी होली है,

फरेबी सी दुनिया मे सच्चा रंग नहीं है फिर भी होली है,

आजकल के अपनो मे अपनो के लिए वक़्त नहीं है फिर भी होली है,

हाथों मे गुलाल है और मन मे कटार है फिर भी होली है,

तमाम उलझने है जलती मन मैं मन की होली है,फिर भी होली है,

चलो होली कल भी थी आज भी है बस होली तो होली है

क्या जला आये होलिका मे सब तो राख है फिर भी होली है,

Wednesday, 16 March 2022

मेरा जादू..................................

 तू वजह कब बन गया मेरे जीने की पता ही ना चला , 

एक अजनबी अनजान शक्श मुझे इतना प्यारा भी होगा,

जिसपे बेफिक्र हो के मैं यकीन करती हूँ,

जो मुझे बात बे बात ढेरो मुस्कुराहट तोहफे मे देता है,

जिसने मुझे बदल के रख दिया मेरी रात को दिन बना दिया,

मेरी उदासियां जाने कहां दफना दी,

मैं तो चुप गुमशुम सी जी रही थी जिंदगी ,

उसने मुझे खुद से खुद मे मिला दिया,

वो एक बड़ा जादुगर ही है जो आज मेरी आदत बन गया,

अब डर लगता है कहीं ये हाथ ना छूट जाए,

इसके जाने से मेरा ख्वाब ना मेरी आँखों से रूठ ना जाए,

फिर मैं गुमशुम हो जाऊ और हंसना क्या मुस्कुरा भी ना पाऊं,

कहां से लाये हो तुम इतना प्यार निश्चल, निर्मल, निर्विकार,

तेरे लीजिये मुझे हर मुश्किलें स्वीकार...................................

न्

Tuesday, 8 March 2022

 किसी को समझने मे गलत समझना सबसे आसान होता है सही समझने मे शायद बरसो लग जाते है गलत ठहराने मे चन्द पल एक इल्जाम एक तोहमत बस 

Sunday, 16 January 2022

जीवन एक रणभूमि

 जीवन एक रणभूमि है हुंकार करो और बड़े चलो, 

खुद को ही खुद से जीतो,

खुद के प्रहार लोगो के वार सब सहते रहो और लड़ते चलो कभी खुद से ,कभी दूसरों से जब उचित जान  प्रतिकार करो,

 खुद ही तुम खुद को समझो हर हार जीत सहर्ष स्वीकार करो

जीवन के रण मे तुम घायल हो या मर जाओ हर घाव से रिस्ते खून का स्राव मे आनंद भरो,

तुम कभी ना विचलित हो जीवन पथ पर,

हर घाव सहर्ष स्वीकार करो,

जख्म को हरा ही रहने दो हर दर्द में तुम आंनद भरो,

पथ के कांटे पथ के कंकर खुद ही ढूंढो खुद पाँव धरो,

जीवन मे सब एकल ही है ये बात सहर्ष स्वीकार करो,

जीवन एक रणभूमि है हुंकार करो और बड़े चलो...................................................

दर्द

 हर एक शख्स जो हमसे रुबरु हुआ वो कुछ ना कुछ हासिल ही करने आए, हम बेमतलब सबको अपना मान बैठे , हमें हमेशा एक फरेब एक टीस ना मिटने वाला दर्द ही हासिल हुआ ,ना बदल पाए हम खुद को फिर भी एक बचपना जो हमने बड़े होने तक ना छोड़ा, ना जाने मरने के बाद ही छूटेगा ये अब तब तक और कितने दर्द हासिल होंगे, मन से सोचने का काम कब बंद होगा ,कब हम खुद से खुद मे शामिल होंगे.................................................................................

जीवन -एक स्वप्न

उम्र भर के लिए कुछ भी नहीं जो आज है वो कल नहीं होगा वक़्त है बदल जाएगा, और बदलता वक़्त ले जाएगा अपने साथ आपका सब कुछ, कुछ झूठी मुस्कान कुछ सच्ची हकीकत, कुछ तस्वीर सा आईना, कुछ गहरी कुछ उथली बातें, कुछ परछाइयां ,

........................................

Tuesday, 15 June 2021

पिंजरा

 क्यूँ कभी कभी ऐसा लगता है जैसे हमारे इर्द गिर्द एक बड़ा सा पिंजरा हो और हमने उसमें खुद को कैद कर रखो अपनी स्वेच्छा से अपने हालातो के चलते ,कभी मन मे आता है ये सारे दायरे हम तोड़ दे खुद को स्वतन्त्र छोड़ दे ,तोड़ दे ये पिंजरा रिहा हो जाए , पर क्यूँ नहीं कर पाते हम ऐसा क्यूँ नहीं तोड़ पाते अपनी सोच के दायरे , क्यूँ नहीं आसमानो तक अपनी आवाज़ नहीं पहुंचा पाते ,क्यूँ घुटन के बाद भी कम हवा मे सांस लेते है ,


Tuesday, 25 May 2021

राज........–

 इस तिलिस्मी दुनिया मे लोग वफादार नहीं मिलते,

मन कि बात कह सके वो राजदार नहीं मिलते,

मिलता है सब कुछ यहां के बाजारो मे मगर जो बिक ना सके वैसे ईमानदार नहीं मिलते,

बड़ा आसान लगता है अपना मान लेना मगर जो अपना बन सके वैसे किरदार नहीं मिलते,

दिए कि लो मे रोशन है आज भी कई घर कि सबके यहां रोशनदान नहीं मिलते,

Saturday, 15 May 2021

बातें

 बात की बात थी ,

बातों में बात थी,

बातों ही बातों मे बात बीत गई,

बातों की कहानी बनी,

बातों का बतंगड बना ,

इन्ही बातों बातों मे दिन और रात बीत गई .........

Thursday, 13 May 2021

मन की बात

 बहुत दिन बीते मेरी खुद से कोई ना बात हुई,

मिलते है बाहरी दुनिया से खुद से पर मुलाकात ना हुई,

कई बार उमडे मन के बादल पर बरसात ना हुई,

आँखों मे नमी भी रही , भावनाओं मे ख़ुशी भी रही पर इनकी रहमत हमारे साथ ना हुई......................


Monday, 3 May 2021

स्पष्टता

 जिंदगी और मौत का अगर कोई सवाल नहीं, 

तो यूँही असत्य कहना मेरा कोई कारोबार नहीं, 

झूठ से हासिल कभी कुछ भी तो होता नहीं,

सार्वभौमिक सत्य  है जीवन कोई धोखा नहीं.......अंजलि

Friday, 9 April 2021

जीवन

 जिंदगी किसी जंग से कम नज़र आती नहीं,

हम जिंदा है या मर चुके है बात समझ आती नहीं,

ना नजरिए है ना नजारे है,

कभी सोचो तो डर लगता क्या हम वही है ??

जो कभी किसी बात से डरते ना थे,

हर गलत बात पे लड़ते थे पीछे हटते ना थे,

अब बड़े मजबूर और कमजोर से हो गए है हम,

लगता है अपने आप से हि दूर हो गए है हम,

किस किस से लड़े किस किस कि सुने

जीवन शूल सा भूकता है,

कौन सी राह चलें, कौन सी छोड़ दे,

कौन सपना है कौन पराया किसे क्या कहे या कुछ भी कहना छोड़ दे,

ये खामोशी कहीं मुझे खामोश हि ना कर दे..............


Thursday, 8 April 2021

यूँ ही अनकही

 जीवन की आपाधापी में हम कुछ ऐसे दौड़े,

उतर गए रंग ,

दिखें सबके ढंग,

चलो अब हौले हौले....................