जिंदगी के सिरे ढूंढिए वक्त तो फिसल रहा है,
धीरे धीरे ही सही जिंदगी जा रही है मौत के करीब,
समेटिए खुद को दूसरों का आसरा छोड़िए,
सच सिर्फ इतना ही है हर एक रिश्ता किसी वजह और जरूरत से ही जुड़ा होता है,
मौत आने तक सब अपने ही लगते है मौत के बाद इंसान अकेले ही लकड़ी की चिता पे पड़ा होता है,
राख बन जाने तक रुकने वाले भी सोचते है समय खराब हो रहा है,
वो अंतिम संस्कार तेहरवी तक चलने वाले क्रियाकर्म को भी ढोंग और ढकोसला बताता है,
अरे जाने वाला गया अब भला कौन किसको याद आता है,
जिंदा रहते ही कहा याद करते है लोग हाल चाल पूछ के कोई एक आद ही औपचारिकता निभाता है,
रिश्ते और रिश्ते , रिश्तों के बाजार में रिश्तो की लेन देन में, रिश्तों के बोझ को निभाने वाला ही निभा पाता है ,
खैर छोड़िए जिंदगी है तब तक जिए खुद से खुद तक कोई याद करे तो ठीक कोई साथ चले तो ठीक ना भी चले तो भी ठीक ,कोई अपना माने तो ठीक ना भी माने तो भी ठीक ,दोस्त माने तो ठीक दुश्मन माने तो भी ठीक ,राम राम कहे और मस्त रहे दुनिया में कोई किसी का है ही नही इस यथार्थ के साथ जीवन का सफर तय कर मौत के अंतिम पडाव तक ...............................................................