Tuesday, 27 August 2019

ख़ामोशी खामोश नही ....

वो एक ख़ामोशी जो शोर नही करती ,
वो हजारो उलझने लपटें होती है,
हजारों आवाजें है उसमें जो सिर्फ सुनायीं नही देती,
हम उस ख़ामोशी की आवाज सुनना चाहते है,
पर सुन नही पाते यहां वो ख़ामोशी शांति नही देती बेचैनी देती है,
ख़ामोशी शांत तो तब होती है जब हम सब आवाजे सुन ले जो हम सुनना चाहते है,
फिर नही बचता कुछ कहने सुनने को तब जो शान्ति होती है वो मन की शान्ति होती,
जिसमे सुकून होता है, नम्रता होती है,
गुस्सा और बेचैनी नही होती,
पर कभी कभी न टुटनेवाली ख़ामोशी इंसान को शून्य की और ले जाना चाहती ,
सब कुछ टूटने के बाद जो सन्नाटा होता है वो शांत नही होता व्याकुल होता है,
पर कोई हल नही इंसान हर हाल में जीता है,
जिंदगी में जीने के लिए ख़ामोशी से भी ख़ामोशी से ही दोस्ती करनी होती है,
मन की शान्ति को उथल पुथल बेचैनी के समुद्र मे ढूँढना होता है,
हालात चाहे कितने भी अजीब हो ,नाउम्मीदी हो उम्मीद फिर भी जोड़नी होती है,
चाहे कितना भी गहरा हो डुबाव उतराव ढूंढना पड़ता है,
ख़ामोशी मे भी मन की शान्ति का मुकाम ढूँढना पड़ता है...........




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