आँखें फड़कना बंद हो गई,
हिचकियों ने आना छोड़ दिया,
आंखें खुली रखो या बंद नींदों ने आना छोड़ दिया,
सपने जो सच से लगते थे टूट गए,
तो आँखों ने सपने सजाना छोड़ दिया,
अब तो सच भी सच्चा नही लगता,
हमने सच और झूठ का आईना खुद को दिखाना छोड़ दिया,
बहुत बह गई भावनाओं के ज्वार भाटे मे अब तो एहसास के किनारों पे भी जाना छोड़ दिया,
ये दुनिया दिखावटी बातें ही करती है हमने उनकी गहराई में जाना छोड़ दिया...............
हिचकियों ने आना छोड़ दिया,
आंखें खुली रखो या बंद नींदों ने आना छोड़ दिया,
सपने जो सच से लगते थे टूट गए,
तो आँखों ने सपने सजाना छोड़ दिया,
अब तो सच भी सच्चा नही लगता,
हमने सच और झूठ का आईना खुद को दिखाना छोड़ दिया,
बहुत बह गई भावनाओं के ज्वार भाटे मे अब तो एहसास के किनारों पे भी जाना छोड़ दिया,
ये दुनिया दिखावटी बातें ही करती है हमने उनकी गहराई में जाना छोड़ दिया...............
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