सच में ये जीवन मृत्युलोक ही है जरुरी नही साँसों की डोर टूटे तभी मौत हो कभी कभी जिंदगी रहते भी इंसान मर जाता है और वो स्थिति मौत से भी बड़ी होती है,क्योंकि मरने के बाद इंसान मुक्त तो हो जाता है सब रिश्तो, भावनाओ और एहसासों से ,पर जिंदगी रहते आयी मौत तो बोझ और चिंता में तिल तिल तड़पाती रहती है.........................
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