नकारात्मकता किसी के जेहन मे यूँही नही जाती हर इंसान चाहता है खुश रहना पर जब आपको जीवन ने सिर्फ किये के बदले राख ही परोसी हो तो आप किस सोच से सकारात्मकता का दामन थामे,या तो आप खुद को हद तर्जे का बेफकूफ मान ले ,या अपने जीवन मे खुद को हीं अपने लिए सिर्फ एक अभिशाप
Monday, 30 October 2023
आपके होने या ना होने से जब किसी को कोई फर्क नही पड़ता तो आप शायद घर मे पड़े उस खिलोने से है जिन्हे वक़्त होने या मन होने पे खेल के छोड़ दिया जाता है, या उस जानवर की तरह जिन्हे पुचकार बुलाया जाता है जब खुद का टाइम पास करना हो उसके बाद भगा दिया जाता है , क्या ये जीवन आप उन लोगो के हिस्से मे देना चाहेंगे जिनके लिए आप सिर्फ एकनाम है आपकी भावनाये, संवेदनाये सिर्फ उनको समझने के लिए हो पर आप खुद इस उम्मीद से परे रहे कि आपके मन को भूल कर भी कोई समझेगा ,नही समझेगा तो क्यू ही समझाना क्यों बेवजह लोगो के जीवन मे खुद की उपस्थिति दरसाना जब आप हीं उनके लिए महत्वहीन है तो आप की भावनाये तो मायने क्या हीं रखेंगी, कभी कभी हम लोगो को खुद से ज्यादा मान बैठते है भूल जाते है खुद को भी ,पर दुसरो का तो वजूद है उनका अपना जीवन उनके मुताबिक है हमारे नही शायद हम ये भी भूल जाते है कि हम तो कोई नही कुछ भी नही पता नही किस बेनाम रिश्ते को नाम दिये जा रहे है ,पता नही क्या निभा रहे है, हम तो अजनबी है उस शख्श के लिए फिर किसको अपना बता रहे है,मन की मनोदशा कभी कभी विचारो के प्रहार से उद्दीगन हो जाती है मन टूट चुका होता है उन बातों से जिनके कसूररवार आप ठहरा दिये जाते हो ,शायद जीना नही आता मुझे या ये मान पाना कि कौन अपना और कौन पराया ,हम तो सिर्फ मानने से ही उस रिश्ते को निभाते जिसका कोई वजूद ही नही ना दुनिया मे ना उस व्यक्ति के लिए जिसको आप मानते हो .अपनी भावनाये शायद मेरी पहुँच से बाहर है लोग आपको हजार गलतियां बता के आपको बदलने की कोशिश करते है पर सिर्फ तब तक जब तक आप उनके मुताबिक ना हो उसके बाद वो ही बदल जाते ,कभी कभी अकेलापन शायद एक रोग बन जाता है तो हम अपने मन की लोगो से कह देते है बिना सोचे समझे की वो बातें उनके लिए महत्वहीन है शून्य है उनका अस्तित्व फिर क्यू किसी के लिए खुद को कटपुतली बनाना ,जब आपका वजूद ही ना हो .............
बोझ
आप जब लोगो पे बोझ बनने लगते है ,
आपकी मजूदगी से वो अखरने लगते है,
शायद रिश्ते जरूरत से ज्यादा कुछ भी नही,
जरूरते ख़तम होने पे रिश्ते भी समिटने लगते है,
Wednesday, 20 September 2023
शून्य
संदेह और प्रेम दोनो एक साथ नही रह सकते,
पर सच और झूठ रह सकते है ,
झूठ को सच का नकाब पहना के दूसरो को बेवकूफ बनाना कौनसा मुश्किल काम है ,
ये आसान भी इसीलिए है क्यूंकि आप यकीन करके खुद ही खुद को बेवकूफ बना रहे होते है ,
Wednesday, 30 August 2023
कांच
कांच के चमचमाते से टुकड़े हीरे नही बन सकते,
ठीक वैसे ही जैसे दूसरो के लिए बनाई हुई बातें खुद पे लागू नहीं कर सकते,
बड़ी ही अच्छी लगती है कुछ बातें पर सिर्फ बातों में ही क्योंकि वो होती भी सिर्फ बातें ही है,
जब वही बातें उसी इंसान पे परखने लगो तो चुभने लगती है,
सच्चाई तब तक सच्ची लगती है जब तक दूसरी तरफ से छिपी रहे और एकतरफा हो,
खुद पे बात आती है तो सच्चाई के मायने ही बदल जाते है...........
Monday, 28 August 2023
मन के पंख
Friday, 30 June 2023
समर्पण और प्रेम
प्रेम में समर्पण का महत्व तो सभी बताते है ,
पर क्या खुद को उस समर्पण में ढाल पाते है,
जितना आप लोगो के लिए खुद को मिटाते जाओगे,
दूसरा आपको उतना ही आजमाता जाएगा,
आप मिट भी जाओगे तो मजाक ही बनाए जाओगे,
वक्त के साथ लोग बदल जायेंगे और आप सिर्फ एक तमाशा बन के रह जाएंगे,
Saturday, 17 June 2023
पूर्ण सत्य
जिंदगी के सिरे ढूंढिए वक्त तो फिसल रहा है,
धीरे धीरे ही सही जिंदगी जा रही है मौत के करीब,
समेटिए खुद को दूसरों का आसरा छोड़िए,
सच सिर्फ इतना ही है हर एक रिश्ता किसी वजह और जरूरत से ही जुड़ा होता है,
मौत आने तक सब अपने ही लगते है मौत के बाद इंसान अकेले ही लकड़ी की चिता पे पड़ा होता है,
राख बन जाने तक रुकने वाले भी सोचते है समय खराब हो रहा है,
वो अंतिम संस्कार तेहरवी तक चलने वाले क्रियाकर्म को भी ढोंग और ढकोसला बताता है,
अरे जाने वाला गया अब भला कौन किसको याद आता है,
जिंदा रहते ही कहा याद करते है लोग हाल चाल पूछ के कोई एक आद ही औपचारिकता निभाता है,
रिश्ते और रिश्ते , रिश्तों के बाजार में रिश्तो की लेन देन में, रिश्तों के बोझ को निभाने वाला ही निभा पाता है ,
खैर छोड़िए जिंदगी है तब तक जिए खुद से खुद तक कोई याद करे तो ठीक कोई साथ चले तो ठीक ना भी चले तो भी ठीक ,कोई अपना माने तो ठीक ना भी माने तो भी ठीक ,दोस्त माने तो ठीक दुश्मन माने तो भी ठीक ,राम राम कहे और मस्त रहे दुनिया में कोई किसी का है ही नही इस यथार्थ के साथ जीवन का सफर तय कर मौत के अंतिम पडाव तक ...............................................................
Monday, 5 June 2023
भरम
सब के पास चंद अपने है ,
मेरे पास भरम है,
हाथो की लकीरों में खोट है
या मैं ही गलत हूं रिश्ते निभाने में,
लोग सिर्फ आजमाते है मुझे अपनाते नही है,
लोगो को अपना समझने से वो अपने बन जाते नही है,..............
रेत के रिश्ते
सबको अपना मान के जो हम चल रहे है,
हमेशा से गलत हम ही है जो अपनो को अपना समझ रहे है,
कोई क्यू समझे हमे सही हम तो उनमें से है जो सबको अखर रहे है,
हाथो में रेत ही रेत है हम और भर रहे है........................
Sunday, 2 April 2023
कोई अपना नहीं......
Saturday, 11 February 2023
नाउम्मीद....
जब अपने अपने नहीं होते तो परायों से उम्मीद कैसी,
इस दिखावा और झूठ कि दुनिया में सच्चाई की उम्मीद कैसी,
Sunday, 22 January 2023
पिंजरे की कैद
कभी कभी इंसान की स्थिति पिंजरे मे कैद उस पंछी जैसी होती जो पिंजरे से रिहा होने कि सोचना भी नहीं चाहता, मोह वश उसको पिंजरा ही अच्छा लगने लगता वो कैद को सहृष स्वीकार कर वाह्य दुनिया से खुद को अलग कर उस छोटे से पिंजरे को अपनी पूरी दुनिया मान लेता है, और बंधन मे बंधे होते भी जीवन् को आज़ाद होके जीता, पर मोह , माया , और भावनाओ से बना ये जाल् कभी ना कभी तो टूटता पर तब तक पंछी अपनी उड़ान भूल चुका होता अब उसे अपनी कैद से ज्यादा आजादी से डर लगने लगता , वो स्व छ्न्द आसमानो मे उड़ने वालोंं के साथ जीवन् जीने योग्य नहीं रहता ,अकेले उस पिंजरे मे कैद उसके सारे अपने उसको भूल चुके होते,पिंजरा टूटने पे रिहा होने पर उसके जीवन् का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता , जैसे इंसान मोह से जुड़े होने कि वजह से अपने आप को अपनो के बीच सुरक्षित और मुक्त मानता जीवन् जीने कि उसकी लालसा मृत्यु जैसे सत्य को भी स्वीकार नहीं करना चाहती , और मृत्यु के बाद भी वो भटकाव लेके अपनो कि तलाश करता वो अपने जो माटी के पुतले को जला चुके होते, और दो चार दिन उसको भुलाने कि प्रकिया मे आगे बढ़ चुके होते , समय रुकता नहीं सब अपने जीवन् कि कैद मे जीवन् जीने लगते ,माया रूपी सोने के पिंजरे मे खुद को मुक्त मान लेते ...................
मन के घोड़े ......
मन के घोड़े दूर दूर तक सपनो मे हो आते है ,
सपने तो सपने होते कब सच से नजर मिलाते है,
सपनो को जी लेने वाले भ्रम का जाल बनाते है,
खुद से खुद को ही दूर रखके हवा हवा ( भावनाओं) मे रह जाते है,
सच तो ये सच के सामने सपने दम तोड़ ही जाते है ................
Sunday, 20 November 2022
रंग उतरता ही है....
जब दरार सी आती है फर्क पड़ ही जाता है ,
जुडाव से बिखराव तक का सफर चल ही जाता है,
दर्रे दर्रे उतर जाती है सब पपड़ीयां,
खो जाती है रंगत बदल जाती है सारी हस्तियां,
रंग उतरता ही है इंसान हो या तितलियां,,लल
,
जिंदगी एक रेल.......
रेल सी लम्बी जिंदगी और बोगी जैसे जुड़े हर रिश्ते और यात्री जैसे जुड़े हर अपने ....
रेल सी जिंदगी है ,
है बड़ा लम्बा सफर,
जितने डिब्बे है जुड़े सबका अपना नंबर,
चल रहे है एक पटरी रास्ता है बस सफर,
कौन आए कौन जाए पटरियों को क्या खबर,
उच्च नीच जाति जैसे जुड़े एसी से जनरल ,
अपना अपना श्रेणीक्रम है, अपना अपना मूल्य है,
यूँ तो है एक ही डगर है ,अन्तर
तो पर जरूर है,
समाज के भेदभाव जैसा रेल पे भी है असर,
सब जुड़े से दिख रहे है है सभी अलग थलग,
कि जिंदगी एक रेल सी है, है बड़ा लम्बा सफर ..
बोगी जुडती कपलिंग से बँधी रहती वेक्यूम से,
रिश्ते जुड़ते भावनाओं से बंधे रहते स्नेह से,
टूट जाते स्वार्थ से, छल से, चाल से, कपट से,दम्भ से
उतर जाते यात्री से अपने अपने मतलब से अपने अपने स्टेशन,
रास्ते है पडाव है बांधाये है सुख दुःख सी,
चलती जाती रेल का बस चलते जाना अनवरत,
कभी जीवन के अंत तक भी साथ देती पटरियां,
या कभी यूँही कहीं बोझिल हो टूट जाती सी है,
कौन आए कौन जाए पटरियों को क्या खबर,
जिंदगी एक रेल सी है ,है बड़ा लम्बा सफर ..
किसकी मंजिल है कहां तक कितना लम्बा है सफर .........................
Thursday, 12 May 2022
..........
कभी कभी खुद को खुद ही दफनाना पड़ता है ,
अपनी जिंदगी को जीते जी मौत जैसा बनाना पड़ता है,
ख़ुशी नहीं मिलती किसी को भी ऐसा करके
पर खुद से हार कर खुद को दिखाना पड़ता है,
Wednesday, 11 May 2022
दो कदम
दो कदम आगे ही तो बढ़े थे ,
हम को बदल के लोग बदलने लगे ,
हंसी कि उम्मीद तो हमको कभी थी ही नहीं,
लोग आँखो मे आँसू देख के ही हंसने लगे,
दूसरों को खुश रखने को हमने खुद से ही समझौते किये,
लोग हमें जख्म दे के हमसे मुकरने लगे,
खेल नहीं हूँ मैं जो कल अपने बनने का दावा किये,
आज वो दाँव खेलने लगे ..................
Sunday, 24 April 2022
तमाशा
ये तो सच है कि भगवान झटके देते है कभी कभी अनगिनत,
कभी सपने शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाते है,
कभी मुस्कुराते हुए चेहरे पल भर मे आंसुओं कि बाढ़ मे बदल जाते है,
कभी कभी अपने अपनो से इतनी दूर निकल जाते है जहां ना आवाज जाती है ,ना ख़ामोशी
ये जनम वो जनम ,अच्छे कर्म बुरे कर्म ,
हाथों कि लकीरें, माथे कि लकीरें,
मेरी तक़दीर ,तेरी तकदीर,
किसने देखा है आने वाला कल ,
पर क्या ये वक़्त जो थम गया बरसो से सिर्फ अपने लिए ,
ऐसा कौन सा जनम था वो जहां के कर्ज यहां तक चलें आए,
इस जनम का तो याद नहीं ऐसा कौन सा कर्म था वो जिसकी सजा आज तक पूरी ना हुई ,
सोच और समझ से परे हम ने किया क्या जो हमसे रास्ते ही छूट गए,
अपने जो नाम के ही अपने थे उनके भी गर्दिश मे हाथ ही छूट गए,
लोग समझते है हम ज़िंदा है आज तक कुछ मौत ऐसी भी होती है जिनमें साँसे नहीं जाती ,
ये वो मौत है जिसमें शरीर ख़ाक नहीं होता चिता पे नहीं सोता ,
मरने वाले को तो फिर भी सुकून मिल गया होता है ये तो वो मौत है जहां इंसान जिंदा ही मर गया होता है,
रिश्तों के तमाशे मे भावनांए दफ्न हो गई,
ऊधेर बुन और कसमकश मे जीवन अपना अस्तित्व खो गई