Saturday 6 May 2017

क्या हैं समाज ज्ञान ?????😢

हम सबको बचपन में moral science पढ़ायी जाती है,
बड़ी बड़ी बातें सिखायी जाती हैं,
पर बड़े होने पे हमे उन morals पे चलने की स्वतंत्रता नही मिलती हैं,
वो बाते सिर्फ पढने तक ही रहती है जीवन में उतारी नही जाती,
सभी नियम उलटे से बेउत्तर ,बेमायने से लगते हैं,
जब गिरते हुए को संभालने की जगह उसे कुचलकर निकल जाने को हम समाज की रीत कहते हैं,
यही होता हैं सब ऐसा ही करते हैं ,
गलत बात को भी ठीक कहते हैं???
किसी की मदद करने को जुर्म समझा जाता हैं,
मरते हुए को बचाने की नही मरता  छोड़ जाने की सलाह दी जाती हैं,
फिर क्यों society science हमे बचपन में पढ़ाई नही जाती,
क्यों बेवकूफ समझा जाता हैं उन्हें जो दूसरों के काम आते हैं,
भले ही नही मिलता कुछ पर आत्मसंतुष्टि तो पाते हैं..............

Thursday 27 April 2017

क्या हम हिंदुस्तान में ही रहते हैं????????

हिंदुस्तान का नाम बदल के लोग इंग्लिश तान क्यों नही कर देते है, सब को जब इतनी इंग्लिश पसंद हैं तो हिंदी भी इंग्लिश मैं क्यों नही बोल लेते , माना कि वो एक भाषा हैं , पर क्या हम विदेशी हैं, जो हर समय सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाला सभ्य कहलाये, और हिंदी बोलने वाला पिछड़ा हुआ और देहाती , ये कहा कि स्वतंत्रता हैं कि हम अपने ही हिंदुस्तान में रह कर हिंदी नही बोल सकते , क्यों बंदर बनके सिर्फ नक़ल ही करते हैं सब? क्या अपनी कोई पहचान हैं ही नही , अपनी मातृभाषा का अपमान स्वयं ही क्यों क्या अपनी भाषा का कोई मूल्य कोई सम्मान नही हैं??????

अपने बच्चो को इंग्लिश माध्य्म में सभी पढ़ाते हैं क्यों सिर्फ इंग्लिश ही उन्हें स्मार्ट बना सकती हैं, फिर जब बच्चे विदेशियों जैसा हाल करते हैं तो क्यों बुरा लगता हैं, वो भी अपने पिछड़े हुए हिंदुस्तानी माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाते हैं , फिर क्यों बुरा लगता हैं, अब अंग्रेजी सीखना और अंग्रेज बनाने में हम फर्क ही भूल गए हैं तो फिर अपने हिंदुस्तानी संस्कारो का रोना क्यों रोते हैं बाद में जब बच्चा बना इंग्लिशतानी तो क्यों कदर करेगा अपने रिश्तों की, अपने मूल्यों की , बड़ो के मान की, आदर की क्यों जैसा आप उन्हें बना रहे हैं वो वैसा ही तो कर रहे हैं न ??????

Sunday 23 April 2017

नन्ही कश्तियाँ............

बारिश की बूंदे हमने भी खेली थी ,
कागज़ के चंद टुकडो से कश्तियाँ बनायीं थी ,
कुछ भीग के डूब गयी ,
कुछ किनारे पर ठहर गयी ,
कुछ दो कदम ठहरी भी ,
पर ये खेल बस पल दो पल का ही था ,
२ पल मन को बहलाने का खेल ,
हँसाने -रुलाने का खेल ,
पल २ पल में ही जब बदल जाते हैं सारे मंजर ,
तो ज़िन्दगी भी लगने लगती हैं सिर्फ एक खेल ,
एक ऐसा खेल जिसके खिलाडी तो हम हैं ,
पर चलानेवाला कोई और हैं ,
उस काठ के घोड़े की तरह की तरह जो चलता भी हैं ,
और पहुँचता भी कही नही |

Sunday 26 March 2017

जाल......

बड़ी बड़ी बातों का बड़ा बड़ा जाल,
सीधे बने लोगो की शतरंज सी चाल,
जैसी दिखे दुनिया वैसा सच्चा नही हाल,
भ् म जाल,माया जाल, रिश्तो का व्यापार,
इन सब में घिरा हैं इंसान का जीवनकाल,............

Saturday 25 March 2017

जिद्दी चिराग....

आँधियों देखते हैं तुममे भी कितना दम हैं,
चिराग आज भी तेरी ही जद में रोशन हैं,
है तू जिद्दी तो नन्हा चिराग क्या कम है,
टिकेगा वो ही जिसमे अंत तक जूझने का दमखम हैं..........................

Friday 24 March 2017

ये कैसी वजह ......

हजारो नाम है किरदार के
हजारो शख्सियते भी है,
कोई अपना कहता हैं हमे,
कोई दुश्मन मानता भी हैं,
दोनों ही रिश्ते हैं,
मगर इनकी हदें भी है,
कहने को तो ये दुनिया बहुत बड़ी हैं,
मगर ये घूमती रहती हैं क्यों इसकी वजह भी हैं,
ये वापिस फिर उसी मोड़ पे लाती है इंसान को ,
जहां पे मौत मिलती जिंदगी से गले भी है,..........

Monday 20 March 2017

हवा के साज पे लोगो का अंदाज

हवा की दिशा के साथ बहने वाले लोग
हवाओं की दिशा बदलते ही अपना रास्ता बदल लेते हैं,
उलटी हवा में उन्हें टिकना नही आता,
उसूलों की चटनी बनाके खा जाते हैं,
बेईमानी के शरबत के साथ पी जाते हैं अपना आत्मसम्मान,
रह जाते हैं मार के अपनी आत्मा,
खुद को जिंदा बताते हैं,
पर उन्हें जीना नही आता,
दफ़न कर देते हैं अपनी मन की हर आवाज को मन में,
कि बेबाकी से उनको जख्म को सीना नही आता,
सर को गुरुर से उठा के चलते हैं,
उन्हें ईश्वर के आगे सर झुकाना नही आता,
बेतालों की तरह नाचते हैं दुनिया की हर लय पे,
कि जिंदगी की सरगम को पहचाना नही आता
........

Sunday 12 March 2017

हौसलें की ताकत........................

लोग ऐसे  भी हैं दुनिया में जो मर मर के भी जीते हैं ,
अपने सारे दुखो को पानी की तरह पीते हैं ,
पर हौसलों की ताकत हैं कि सब सहकर भी हँसते हैं ,
और अच्छे दिनों कि कामनाये रखते हैं ,
उम्मीद हैं उन्हें आज भी उस दिन कि जो आज तक नही आया ज़िन्दगी में उनकी ,
नही मिल पाया खुशियों का एक पल भी सुकून से फिर भी करते हैं इन्तजार
नही मानते ज़िन्दगी से हार

Friday 10 March 2017

जय सिया राम, भगवा आ ही गया

केसर जितना पवित्र और सुगंधित है
केसरिया रंग भी सद भाव और शान्ति का प्रतीक हैं
अब तो रंग केसरिया ही छा गया
होली आयी तो पूजा को कमल भी खिल के आ गया
रंगों रंग केसरिया
होली भई केसरिया ...............जय सिया राम

Saturday 8 March 2014

टेढ़े मेढ़े रास्ते

टेढ़े मेढ़े रास्ते हैं गिरना हैं, सभलना हैं ,
चोटें भी लगेगी पर फिर भी हमे चलना हैं ,
इन रास्तो पे चलते और संग संग चलते कुछ और अजनबी हैं ,
कुछ दूर तक हैं अपने कुछ को बीच में मुड़ना हैं ,
अनजान रास्तो पे अनजान मुश्किलो से हमे खुद ही उबरना हैं ,
ये वक़्त न रुका हैं , न जीवन चक्र ही थमा हैं ,
जब तक हैं जान बाकी साँसों को तो चलना हैं .........

Sunday 24 March 2013

हंसी या सजा

मुस्कुराने की हमें हमेशा सजा मिली ,
एक हंसी भी हजार आसुओं के साथ मिली ,
ये हमारी किस्मत को अच्छी सौगात मिली,
चंद पल मुस्कुराना चाहा, तो आंसुओं की बरसात मिली |
ढूंढने चले जब हम अपने हिस्से की खुशियाँ,
हमे बदले में हमेशा वक़्त की मार मिली |
नही उम्मीद नही आस न कोई किस्मत से गिला ,
सोच लेंगे जो किस्मत में था सिर्फ वही मिला ,
हो सकता हैं किस्मत ही लिखी गयी हो आंसुओं से हमारी
तभी हर हालत हर बात पे आंसू ही मिला |

Sunday 10 February 2013

इंसानी मौत का यह कैसा मजाक

इंसान की मौत की जिम्मेवारी  एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारॊप लगाते ये  लोग ,
उनकी मौत पर भी जुर्माने की मोहर लगाते  ये लोग ,
क्या यह इंसानी जान पैसे में खरीदी जा सकती हैं क्यों इंसान की मौत का भी मजाक बनाते  ये लोग ,
जुर्माने की आड़ लेकर अपनी राजनीती खेलनेवाले क्यों दिखावे का शोक दिखाते ये लोग ,
अखबारों के लिए हैं ये महज बस एक खबर हादसों के नाम पर अपनी भुनाते ये लोग |
मन को  व्यथित और आक्रोशित कर जाते ये लोग ।
उनसे जानो जिनके घर के चूल्हे ठन्डे पड़ गये जिनके अपने कभी  वापिस न आने वाली राह पर चढ़ गये ,
दर्द उनका हम महसूस भी नही कर पायेंगे और मरहम लगाने का उन पर ढोंग रचाते  ये लोग ।


Monday 16 January 2012

बदलाव

लोग बदलते हैं ऐसे जैसे कागज़ के रंग ,
जो पानी पड़ने पर धुंधले हो जाते हैं ,
उड़ जाती हैं महक नकली ,
जब असली धूप के साए मिल जाते हैं ,


बदलाव

लोग बदलते हैं ऐसे जैसे कागज़ के रंग ,
जो पानी पड़ने पर धुंधले हो जाते हैं ,
उड़ जाती हैं महक नकली ,
जब असली धूप के साए मिल जाते हैं ,


Saturday 26 November 2011

इंसान

अमीर और  अमीर , और  अमीर होता ही गया |

 गरीब अपनी गरीबी का  बोझ  ढोता  ही गया  |

 बढता रहा यह बोझ ज्यों ज्यों ज़िन्दगी बढ़ी | 

बढती रही कशमकश ज़माने के साथ आने की|

 बदलते वक़्त से कदमो के तालमेल बैठाने की |

 पर परवाह भी थी उसे अपने आप  से नज़र मिलाने की | 

रिश्ते , नाते ,शर्म और ईमान  बिक गये | 

अमीर बनने के खातिर कितने इंसान बिक गये |

 जो बिक न सका दुनिया के इस बाज़ार में,

 ऐसे  इंसान के अपने ही घर , मकान बिक गये 



नन्हा सा बीज

मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया


तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया

एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा


पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया


फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया


पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया


सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा


गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा


धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया



अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया

बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया|




अब हमे चाहिए आपका थोरा सा प्यारा |

थोरा सा ख्याल , थोरी सी देखभाल 

जिससे हम भी बड़े हो सके | 

पोधे से हो सके एक वृक्ष तैयार |

जो आपको कल देगा शीतल छाया 
,
स्वछ हवा और गर्मी में ठण्ड का साया |


Friday 25 November 2011

नन्ही चिड़िया क्या कहती हैं





मेरी हैं क्या भूल उस ईश्वर की रचना मैं भी ,

जिसने तुमको मानव का जन्म  दिया,

 तुमको क्या हक हैं मुझसे मेरी ज़िन्दगी लेने का,

हमारा घर भी झीना हमसे,

 दिया मौत का धुआं हमको ,

क्यों ऐसा कर रहे हो तुम ए इंसान ,

क्या ऐसा कर के तुम जी पाओगे,

क्या बिना पेड़ो के इस प्रदूषित हवा,

मैं तुम सांस ले पाओगे ,

फिर क्यों कर रहे हो खुद से खिलवाड़ क्या हैं

 तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब,

मैं तो बस एक नन्ही चिड़िया हूँ जनाब,

नन्ही चिड़िया

Monday 24 October 2011

आंसुओ की आहट


मुस्कुराहटो में भी आंसुओ की आहट हैं ,
 ये निगाह उनको छिपाने की कोशिशो में हैं ,
कब तलक छिपेगा गम का दरिया ,
 वो तो अब पलकों के किनारों पर हैं
आखें नम हो तो मुस्कराहट कैसी ,
 दिल का दर्द चेहरे की रहगुजर में हैं
पनाह मिलती नही  जहाँ में कही पर इसको ,
 ये तो  दरिया की तरह बहने की कोशिशो में हैं |
निगाह इसको भला कब तलक छुपाएगी,
 झलझला कर बहेगा यह एक दिन
तूफ़ान कब बंध सका सहिलो से हैं ,


Sunday 23 October 2011

say no to crackers

दिवाली ख़ुशी का और रोशनी का त्यौहार हैं | क्या इसमें पटाखों की आग जरुरी  हैं हजारों रुपये खर्च करके  विनाशकारी  सामानों को खरीदना क्या समझदारी हैं | पटाखों  के रूप में  एक तरफ तो हम अपने पैसो में आग लगते हैं और दूसरी  तरफ  शोर और धुएं से अपने आसपास के लोगो और वातावरण और अपने आप को भी हानि  पहुचाते हैं | दिवाली रोशनी का पर्व हैं या धमाको का क्या बिना धमाको के खुशियाँ जाहिर नही की जा सकती हैं | इन प्रदूषक धमाको को करके हम क्या दिखाना चाहते हैं सामाजिक हैसियत का एक नाटक की किसने कितने ज्यादा पैसो में आग लगाई | इस होड़ में किसने किस्से ज्यादा से ज्यादा अपने आप को और दुसरो को  नुक्सान पहुचाया | जिस चीज के उपयोग से हर हाल में सिर्फ  हानि ही सुनिश्यित हैं तो उसका उपयोग करना सिर्फ बेवकूफी मात्र ही हैं |  जो पैसे हम पटाखों में आग लगाकर  बर्बाद  करते हैं | क्या उन पैसो  को  गरीबो पर खर्च नही कर सकते  जिससे वो भी  दिवाली में थोड़ी  खुशियाँ मना सके | 

Friday 9 September 2011

सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां


सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां को क्या हुआ..
बताएं-
1. रिश्ते ही रिश्ते
अपने भारत में सबसे ज्यादा प्यारी चीज हैं हमारे रिश्ते। मां-पिता-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मामा-मामी, दीदी-जीजाजी, देवर-भाभी, मौसा-मौसी...रिश्तों की लंबी लिस्ट है हमारे यहां। सिर्फ अंकल-आंटी कहने से यहां बात नहीं बनती।
2. हम साथ-साथ हैं
भारतीय परंपरा में अभी भी संयुक्त परिवारों के लिए जगह है। माता-पिता अपने बच्चों ही नहीं, पोते-पोतियों (और मौका मिले तो पडपोते-पोतियों) तक की परवरिश करते हैं।
3. जश्न और उत्सवधर्मिता
कोई फर्क नहीं पडता कि क्या तारीख है, हमें तो जश्न मनाने का बहाना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई..सबके त्योहार मनाते हैं हम।
4. अतिथि देवो भव..
मेहमां जो हमारा होता है-वो जान से प्यारा होता है..., इस गीत का संदर्भ लें तो हम अपने घर ही नहीं, देश में भी आने वाले लोगों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडते। आखिर ऐसा क्यों न हो, हमारी संस्कृति में अतिथि का स्थान देवतुल्य माना गया है।
5. मैं चाहे ये करूं-मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी क्या यह कम खुशी की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल, फॉर द पीपल। यह बात हमारे लोकतांत्रिक देश पर पूरी तरह लागू होती है। हमें धर्म, शिक्षा, अभिव्यक्ति, एक से दूसरे स्थान पर जाने सहित कई अधिकार मिले हुए हैं।
6. विविधता में एकता
रंग-बिरंगी है संस्कृति हमारे देश की। इसीलिए तो कहा गया है, कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी। लेकिन विविधताओं के बावजूद इस देश में एकता है।
7. बैंड बाजा बारात
इस रंगीन देश का हर आयोजन रंगीन है। जन्म, शादी व संस्कार...जिंदगी के हर पडाव पर मौज-मस्ती, धूमधडाका हमारी फितरत है।
8. प्रतिभाओं का देश
नए विचारों व प्रतिभाओं की भारत में कोई कमी नहीं। यहां के चुनिंदा दिमाग विश्व भर में अपने ज्ञान का परचम लहरा रहे हैं। कोई भी क्षेत्र हो, हमने हर जगह अपनी काबिलीयत प्रमाणित की है।
9. परोपकार है परमधर्म
दुख किसी का भी हो, हम उसमें शामिल होते हैं और मदद का हाथ आगे बढाने से पीछे नहीं हटते। पडोसी धर्म निभाना हो या सामाजिक धर्म.., इंसानियत अभी बाकी है यहां।
10. थोडे में गुजारा होता है
हम भारतीयों को मंदी का खतरा नहीं होता। हमें तो कबीरदास सिखा गए हैं, साई इतना दीजै जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए..। कम से कम संसाधनों में जीने की जिद हम भारतीयों में पैदाइशी होती है।
अपने देश से प्यार है तो शिकायतें भी कम नहीं हैं हमें। जानें क्या-क्या हैं ये शिकायतें।
1. भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का खेल
नौकरशाही से राजनीति तक, 2 जी से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स तक..भ्रष्टाचार की जडें यहां बहुत गहरी हो चुकी हैं। हजारों अन्ना हजारे आंदोलन करें, तब शायद बदलाव आ सके।
2. हॉरर किलिंग
आजादी के इतने वर्षो बाद भी जाति व गोत्र के नाम पर ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। विकास की राह में ऐसी बातें बहुत बडा रोडा हैं।
3. टैक्स की मार
आम जनता बढती महंगाई व टैक्स की मार से त्राहि-त्राहि कर रही है। आय पर टैक्स, बाहर खाने व सडक पर चलने का टैक्स..। हम भारतीयों की पूरी उम्र टैक्स चुकाने में ही खत्म हो जा रही है।
4. ट्रैफिक जाम
कितने फ्लाईओवर बनें, मेट्रो सेवाएं शुरू हों, सडकों पर भीड कम नहीं होती। घर से निकलने के बाद मालूम नहीं होता कि वापस कब लौटेंगे।
5. पर्यावरण की परवाह क्या
अपने घर में हम सफाईपसंद हैं, लेकिन बाहर कूडा फेंकने से बाज नहीं आते। प्लास्टिक व कचरा सडकों पर फेंकते हुए हमारे हाथ नहीं कांपते।
6. अजब लोकतंत्र की गजब व्यवस्था
आजादी के इतने वर्षो बाद भी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के अलावा आतंकवाद, जाति-धर्म जैसे बडे कारण हमें चिंतित करने को काफी हैं। लोकतंत्र राजनेताओं की बपौती हो चुका है। हम यही सोचकर खुश हैं कि लोकतंत्र में हैं और व्यवस्था तो खैर..रामभरोसे है।
7. विरोधाभासों का देश
एक ओर मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज तो दूसरी ओर न्यूनतम पब्लिक ट्रांसपोर्ट तक नहीं, एक ओर स्वयंवर, दूसरी ओर बलात्कार व दहेज-प्रथा, एक तरफ आस्था, दूसरी ओर अंधविश्वास, एक ओर विकास के नारे व दावे, दूसरी ओर कई गांवों में प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं..।
8. सिर्फअपनी मर्जी
आजादी का नकारात्मक पहलू यह है कि हम अपनी मर्जी को बहुत महत्व देने लगे हैं। अनुशासन व समय की पाबंदी का हमें खयाल नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करना हमें जन्मसिद्ध अधिकार लगता है।
9. गिले-शिकवे का देशअंत में एक बात हम सभी पर लागू होती है। हम व्यवस्था में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए पहलकदमी नहीं करना चाहते। भगत सिंह, अन्ना हजारे तो हम चाहते हैं लेकिन अपने नहीं-पडोसी के घर में