जिंदगी इतनी बड़ी क्यों है क्यों ना मौत आती है,
जिंदा रहते हुए मरने से क्यों ना मुक्ति दिलाती है,
ख्वाईश नही है कोई अब ऐसे जीने की,
मजबूरी बन गई बस सांसे लेने की......
जिंदगी इतनी बड़ी क्यों है क्यों ना मौत आती है,
जिंदा रहते हुए मरने से क्यों ना मुक्ति दिलाती है,
ख्वाईश नही है कोई अब ऐसे जीने की,
मजबूरी बन गई बस सांसे लेने की......
लोग देते है इस दिन ढेर सारी शुभकामनाएं पर मेरे पास देने को आंसू के सिवा कुछ ना होता ,होता होगा लोगो के लिए ये खास खुशियों का दिन इस दिन से ज्यादा उदास पूरी साल में कोई दिन नही होता, हंसना तो क्या इस दिन तो झूटी मुस्कान भी नही आती है, कुछ सालो से भूल गई थी इस दिन को आज फिर सब पहले जैसा है , यही नियति है मेरी और बस यही मेरी हाथों की रेखा है ...........
भरम मत पालिये की इस दुनिया मे लोग आपके अपने है,
बस चंद मीठे, चंद कड़वे अनुभव आपके अपने है,
बाकी तो सब सोती नींद मे देखे हुए सपने है ............
नींद टूटी तो सपना ख़तम....
खुद ही गिरना है ,
खुद ही सम्भलना है,
रास्ते पथरीले हो या रेतीले,
जीवन मे बस अकेले ही चलना है,
होते होंगी दुनिया के साथ अपनों की भीड़
यहाँ अपनों से ठगे बैठे है खुद ही उबरना है,
हाथों की लकीरें कुछ ऐसी है हाथ मे,
करो सबका पर कोई ना होगा साथ मे,
हाथों को थामने को दूसरा हाथ सिर्फ अपना है,
खुद ही गिरना है ,
खुद ही सम्भलना है,
जीवन मे बस अकेले ही चलना है ........................
आपके होने या ना होने से जब किसी को कोई फर्क नही पड़ता तो आप शायद घर मे पड़े उस खिलोने से है जिन्हे वक़्त होने या मन होने पे खेल के छोड़ दिया जाता है, या उस जानवर की तरह जिन्हे पुचकार बुलाया जाता है जब खुद का टाइम पास करना हो उसके बाद भगा दिया जाता है , क्या ये जीवन आप उन लोगो के हिस्से मे देना चाहेंगे जिनके लिए आप सिर्फ एकनाम है आपकी भावनाये, संवेदनाये सिर्फ उनको समझने के लिए हो पर आप खुद इस उम्मीद से परे रहे कि आपके मन को भूल कर भी कोई समझेगा ,नही समझेगा तो क्यू ही समझाना क्यों बेवजह लोगो के जीवन मे खुद की उपस्थिति दरसाना जब आप हीं उनके लिए महत्वहीन है तो आप की भावनाये तो मायने क्या हीं रखेंगी, कभी कभी हम लोगो को खुद से ज्यादा मान बैठते है भूल जाते है खुद को भी ,पर दुसरो का तो वजूद है उनका अपना जीवन उनके मुताबिक है हमारे नही शायद हम ये भी भूल जाते है कि हम तो कोई नही कुछ भी नही पता नही किस बेनाम रिश्ते को नाम दिये जा रहे है ,पता नही क्या निभा रहे है, हम तो अजनबी है उस शख्श के लिए फिर किसको अपना बता रहे है,मन की मनोदशा कभी कभी विचारो के प्रहार से उद्दीगन हो जाती है मन टूट चुका होता है उन बातों से जिनके कसूररवार आप ठहरा दिये जाते हो ,शायद जीना नही आता मुझे या ये मान पाना कि कौन अपना और कौन पराया ,हम तो सिर्फ मानने से ही उस रिश्ते को निभाते जिसका कोई वजूद ही नही ना दुनिया मे ना उस व्यक्ति के लिए जिसको आप मानते हो .अपनी भावनाये शायद मेरी पहुँच से बाहर है लोग आपको हजार गलतियां बता के आपको बदलने की कोशिश करते है पर सिर्फ तब तक जब तक आप उनके मुताबिक ना हो उसके बाद वो ही बदल जाते ,कभी कभी अकेलापन शायद एक रोग बन जाता है तो हम अपने मन की लोगो से कह देते है बिना सोचे समझे की वो बातें उनके लिए महत्वहीन है शून्य है उनका अस्तित्व फिर क्यू किसी के लिए खुद को कटपुतली बनाना ,जब आपका वजूद ही ना हो .............
आप जब लोगो पे बोझ बनने लगते है ,
आपकी मजूदगी से वो अखरने लगते है,
शायद रिश्ते जरूरत से ज्यादा कुछ भी नही,
जरूरते ख़तम होने पे रिश्ते भी समिटने लगते है,
संदेह और प्रेम दोनो एक साथ नही रह सकते,
पर सच और झूठ रह सकते है ,
झूठ को सच का नकाब पहना के दूसरो को बेवकूफ बनाना कौनसा मुश्किल काम है ,
ये आसान भी इसीलिए है क्यूंकि आप यकीन करके खुद ही खुद को बेवकूफ बना रहे होते है ,
कांच के चमचमाते से टुकड़े हीरे नही बन सकते,
ठीक वैसे ही जैसे दूसरो के लिए बनाई हुई बातें खुद पे लागू नहीं कर सकते,
बड़ी ही अच्छी लगती है कुछ बातें पर सिर्फ बातों में ही क्योंकि वो होती भी सिर्फ बातें ही है,
जब वही बातें उसी इंसान पे परखने लगो तो चुभने लगती है,
सच्चाई तब तक सच्ची लगती है जब तक दूसरी तरफ से छिपी रहे और एकतरफा हो,
खुद पे बात आती है तो सच्चाई के मायने ही बदल जाते है...........
प्रेम में समर्पण का महत्व तो सभी बताते है ,
पर क्या खुद को उस समर्पण में ढाल पाते है,
जितना आप लोगो के लिए खुद को मिटाते जाओगे,
दूसरा आपको उतना ही आजमाता जाएगा,
आप मिट भी जाओगे तो मजाक ही बनाए जाओगे,
वक्त के साथ लोग बदल जायेंगे और आप सिर्फ एक तमाशा बन के रह जाएंगे,
जिंदगी के सिरे ढूंढिए वक्त तो फिसल रहा है,
धीरे धीरे ही सही जिंदगी जा रही है मौत के करीब,
समेटिए खुद को दूसरों का आसरा छोड़िए,
सच सिर्फ इतना ही है हर एक रिश्ता किसी वजह और जरूरत से ही जुड़ा होता है,
मौत आने तक सब अपने ही लगते है मौत के बाद इंसान अकेले ही लकड़ी की चिता पे पड़ा होता है,
राख बन जाने तक रुकने वाले भी सोचते है समय खराब हो रहा है,
वो अंतिम संस्कार तेहरवी तक चलने वाले क्रियाकर्म को भी ढोंग और ढकोसला बताता है,
अरे जाने वाला गया अब भला कौन किसको याद आता है,
जिंदा रहते ही कहा याद करते है लोग हाल चाल पूछ के कोई एक आद ही औपचारिकता निभाता है,
रिश्ते और रिश्ते , रिश्तों के बाजार में रिश्तो की लेन देन में, रिश्तों के बोझ को निभाने वाला ही निभा पाता है ,
खैर छोड़िए जिंदगी है तब तक जिए खुद से खुद तक कोई याद करे तो ठीक कोई साथ चले तो ठीक ना भी चले तो भी ठीक ,कोई अपना माने तो ठीक ना भी माने तो भी ठीक ,दोस्त माने तो ठीक दुश्मन माने तो भी ठीक ,राम राम कहे और मस्त रहे दुनिया में कोई किसी का है ही नही इस यथार्थ के साथ जीवन का सफर तय कर मौत के अंतिम पडाव तक ...............................................................
सब के पास चंद अपने है ,
मेरे पास भरम है,
हाथो की लकीरों में खोट है
या मैं ही गलत हूं रिश्ते निभाने में,
लोग सिर्फ आजमाते है मुझे अपनाते नही है,
लोगो को अपना समझने से वो अपने बन जाते नही है,..............
सबको अपना मान के जो हम चल रहे है,
हमेशा से गलत हम ही है जो अपनो को अपना समझ रहे है,
कोई क्यू समझे हमे सही हम तो उनमें से है जो सबको अखर रहे है,
हाथो में रेत ही रेत है हम और भर रहे है........................
जब अपने अपने नहीं होते तो परायों से उम्मीद कैसी,
इस दिखावा और झूठ कि दुनिया में सच्चाई की उम्मीद कैसी,
कभी कभी इंसान की स्थिति पिंजरे मे कैद उस पंछी जैसी होती जो पिंजरे से रिहा होने कि सोचना भी नहीं चाहता, मोह वश उसको पिंजरा ही अच्छा लगने लगता वो कैद को सहृष स्वीकार कर वाह्य दुनिया से खुद को अलग कर उस छोटे से पिंजरे को अपनी पूरी दुनिया मान लेता है, और बंधन मे बंधे होते भी जीवन् को आज़ाद होके जीता, पर मोह , माया , और भावनाओ से बना ये जाल् कभी ना कभी तो टूटता पर तब तक पंछी अपनी उड़ान भूल चुका होता अब उसे अपनी कैद से ज्यादा आजादी से डर लगने लगता , वो स्व छ्न्द आसमानो मे उड़ने वालोंं के साथ जीवन् जीने योग्य नहीं रहता ,अकेले उस पिंजरे मे कैद उसके सारे अपने उसको भूल चुके होते,पिंजरा टूटने पे रिहा होने पर उसके जीवन् का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता , जैसे इंसान मोह से जुड़े होने कि वजह से अपने आप को अपनो के बीच सुरक्षित और मुक्त मानता जीवन् जीने कि उसकी लालसा मृत्यु जैसे सत्य को भी स्वीकार नहीं करना चाहती , और मृत्यु के बाद भी वो भटकाव लेके अपनो कि तलाश करता वो अपने जो माटी के पुतले को जला चुके होते, और दो चार दिन उसको भुलाने कि प्रकिया मे आगे बढ़ चुके होते , समय रुकता नहीं सब अपने जीवन् कि कैद मे जीवन् जीने लगते ,माया रूपी सोने के पिंजरे मे खुद को मुक्त मान लेते ...................