मुस्कुराने की हमें हमेशा सजा मिली ,
एक हंसी भी हजार आसुओं के साथ मिली ,
ये हमारी किस्मत को अच्छी सौगात मिली,
चंद पल मुस्कुराना चाहा, तो आंसुओं की बरसात मिली |
ढूंढने चले जब हम अपने हिस्से की खुशियाँ,
हमे बदले में हमेशा वक़्त की मार मिली |
नही उम्मीद नही आस न कोई किस्मत से गिला ,
सोच लेंगे जो किस्मत में था सिर्फ वही मिला ,
हो सकता हैं किस्मत ही लिखी गयी हो आंसुओं से हमारी
तभी हर हालत हर बात पे आंसू ही मिला |
Sunday, 24 March 2013
Sunday, 10 February 2013
इंसानी मौत का यह कैसा मजाक
इंसान की मौत की जिम्मेवारी एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारॊप लगाते ये लोग ,
उनकी मौत पर भी जुर्माने की मोहर लगाते ये लोग ,
क्या यह इंसानी जान पैसे में खरीदी जा सकती हैं क्यों इंसान की मौत का भी मजाक बनाते ये लोग ,
जुर्माने की आड़ लेकर अपनी राजनीती खेलनेवाले क्यों दिखावे का शोक दिखाते ये लोग ,
अखबारों के लिए हैं ये महज बस एक खबर हादसों के नाम पर अपनी भुनाते ये लोग |
मन को व्यथित और आक्रोशित कर जाते ये लोग ।
उनसे जानो जिनके घर के चूल्हे ठन्डे पड़ गये जिनके अपने कभी वापिस न आने वाली राह पर चढ़ गये ,
दर्द उनका हम महसूस भी नही कर पायेंगे और मरहम लगाने का उन पर ढोंग रचाते ये लोग ।
उनकी मौत पर भी जुर्माने की मोहर लगाते ये लोग ,
क्या यह इंसानी जान पैसे में खरीदी जा सकती हैं क्यों इंसान की मौत का भी मजाक बनाते ये लोग ,
जुर्माने की आड़ लेकर अपनी राजनीती खेलनेवाले क्यों दिखावे का शोक दिखाते ये लोग ,
अखबारों के लिए हैं ये महज बस एक खबर हादसों के नाम पर अपनी भुनाते ये लोग |
मन को व्यथित और आक्रोशित कर जाते ये लोग ।
उनसे जानो जिनके घर के चूल्हे ठन्डे पड़ गये जिनके अपने कभी वापिस न आने वाली राह पर चढ़ गये ,
दर्द उनका हम महसूस भी नही कर पायेंगे और मरहम लगाने का उन पर ढोंग रचाते ये लोग ।
Monday, 16 January 2012
Saturday, 26 November 2011
इंसान
अमीर और अमीर , और अमीर होता ही गया |
गरीब अपनी गरीबी का बोझ ढोता ही गया |
बढता रहा यह बोझ ज्यों ज्यों ज़िन्दगी बढ़ी |
बढती रही कशमकश ज़माने के साथ आने की|
बदलते वक़्त से कदमो के तालमेल बैठाने की |
पर परवाह भी थी उसे अपने आप से नज़र मिलाने की |
रिश्ते , नाते ,शर्म और ईमान बिक गये |
अमीर बनने के खातिर कितने इंसान बिक गये |
जो बिक न सका दुनिया के इस बाज़ार में,
ऐसे इंसान के अपने ही घर , मकान बिक गये
नन्हा सा बीज
मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया|
थोरा सा ख्याल , थोरी सी देखभाल
जिससे हम भी बड़े हो सके |
पोधे से हो सके एक वृक्ष तैयार |
जो आपको कल देगा शीतल छाया
तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया
एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा
पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया
फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया
पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया
सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा
गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा
धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया
अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया
बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया|
अब हमे चाहिए आपका थोरा सा प्यारा |
थोरा सा ख्याल , थोरी सी देखभाल
जिससे हम भी बड़े हो सके |
पोधे से हो सके एक वृक्ष तैयार |
जो आपको कल देगा शीतल छाया
,
स्वछ हवा और गर्मी में ठण्ड का साया |
स्वछ हवा और गर्मी में ठण्ड का साया |
Friday, 25 November 2011
नन्ही चिड़िया क्या कहती हैं
मेरी हैं क्या भूल उस ईश्वर की रचना मैं भी ,
जिसने तुमको मानव का जन्म दिया,
तुमको क्या हक हैं मुझसे मेरी ज़िन्दगी लेने का,
हमारा घर भी झीना हमसे,
दिया मौत का धुआं हमको ,
क्यों ऐसा कर रहे हो तुम ए इंसान ,
क्या ऐसा कर के तुम जी पाओगे,
क्या बिना पेड़ो के इस प्रदूषित हवा,
मैं तुम सांस ले पाओगे ,
फिर क्यों कर रहे हो खुद से खिलवाड़ क्या हैं
तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब,
मैं तो बस एक नन्ही चिड़िया हूँ जनाब,
नन्ही चिड़िया |
Monday, 24 October 2011
आंसुओ की आहट
मुस्कुराहटो में भी आंसुओ की आहट हैं ,
ये निगाह उनको छिपाने की कोशिशो में हैं ,
कब तलक छिपेगा गम का दरिया ,
वो तो अब पलकों के किनारों पर हैं
आखें नम हो तो मुस्कराहट कैसी ,
दिल का दर्द चेहरे की रहगुजर में हैं
पनाह मिलती नही जहाँ में कही पर इसको ,
ये तो दरिया की तरह बहने की कोशिशो में हैं |
निगाह इसको भला कब तलक छुपाएगी,
झलझला कर बहेगा यह एक दिन
तूफ़ान कब बंध सका सहिलो से हैं ,
Sunday, 23 October 2011
say no to crackers
दिवाली ख़ुशी का और रोशनी का त्यौहार हैं | क्या इसमें पटाखों की आग जरुरी हैं हजारों रुपये खर्च करके विनाशकारी सामानों को खरीदना क्या समझदारी हैं | पटाखों के रूप में एक तरफ तो हम अपने पैसो में आग लगते हैं और दूसरी तरफ शोर और धुएं से अपने आसपास के लोगो और वातावरण और अपने आप को भी हानि पहुचाते हैं | दिवाली रोशनी का पर्व हैं या धमाको का क्या बिना धमाको के खुशियाँ जाहिर नही की जा सकती हैं | इन प्रदूषक धमाको को करके हम क्या दिखाना चाहते हैं सामाजिक हैसियत का एक नाटक की किसने कितने ज्यादा पैसो में आग लगाई | इस होड़ में किसने किस्से ज्यादा से ज्यादा अपने आप को और दुसरो को नुक्सान पहुचाया | जिस चीज के उपयोग से हर हाल में सिर्फ हानि ही सुनिश्यित हैं तो उसका उपयोग करना सिर्फ बेवकूफी मात्र ही हैं | जो पैसे हम पटाखों में आग लगाकर बर्बाद करते हैं | क्या उन पैसो को गरीबो पर खर्च नही कर सकते जिससे वो भी दिवाली में थोड़ी खुशियाँ मना सके |
Friday, 9 September 2011
सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां
सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां को क्या हुआ..
बताएं-
1. रिश्ते ही रिश्ते
अपने भारत में सबसे ज्यादा प्यारी चीज हैं हमारे रिश्ते। मां-पिता-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मामा-मामी, दीदी-जीजाजी, देवर-भाभी, मौसा-मौसी...रिश्तों की लंबी लिस्ट है हमारे यहां। सिर्फ अंकल-आंटी कहने से यहां बात नहीं बनती।
2. हम साथ-साथ हैं
भारतीय परंपरा में अभी भी संयुक्त परिवारों के लिए जगह है। माता-पिता अपने बच्चों ही नहीं, पोते-पोतियों (और मौका मिले तो पडपोते-पोतियों) तक की परवरिश करते हैं।
3. जश्न और उत्सवधर्मिता
कोई फर्क नहीं पडता कि क्या तारीख है, हमें तो जश्न मनाने का बहाना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई..सबके त्योहार मनाते हैं हम।
4. अतिथि देवो भव..
मेहमां जो हमारा होता है-वो जान से प्यारा होता है..., इस गीत का संदर्भ लें तो हम अपने घर ही नहीं, देश में भी आने वाले लोगों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडते। आखिर ऐसा क्यों न हो, हमारी संस्कृति में अतिथि का स्थान देवतुल्य माना गया है।
5. मैं चाहे ये करूं-मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी क्या यह कम खुशी की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल, फॉर द पीपल। यह बात हमारे लोकतांत्रिक देश पर पूरी तरह लागू होती है। हमें धर्म, शिक्षा, अभिव्यक्ति, एक से दूसरे स्थान पर जाने सहित कई अधिकार मिले हुए हैं।
6. विविधता में एकता
रंग-बिरंगी है संस्कृति हमारे देश की। इसीलिए तो कहा गया है, कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी। लेकिन विविधताओं के बावजूद इस देश में एकता है।
7. बैंड बाजा बारात
इस रंगीन देश का हर आयोजन रंगीन है। जन्म, शादी व संस्कार...जिंदगी के हर पडाव पर मौज-मस्ती, धूमधडाका हमारी फितरत है।
8. प्रतिभाओं का देश
नए विचारों व प्रतिभाओं की भारत में कोई कमी नहीं। यहां के चुनिंदा दिमाग विश्व भर में अपने ज्ञान का परचम लहरा रहे हैं। कोई भी क्षेत्र हो, हमने हर जगह अपनी काबिलीयत प्रमाणित की है।
9. परोपकार है परमधर्म
दुख किसी का भी हो, हम उसमें शामिल होते हैं और मदद का हाथ आगे बढाने से पीछे नहीं हटते। पडोसी धर्म निभाना हो या सामाजिक धर्म.., इंसानियत अभी बाकी है यहां।
10. थोडे में गुजारा होता है
हम भारतीयों को मंदी का खतरा नहीं होता। हमें तो कबीरदास सिखा गए हैं, साई इतना दीजै जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए..। कम से कम संसाधनों में जीने की जिद हम भारतीयों में पैदाइशी होती है।
अपने देश से प्यार है तो शिकायतें भी कम नहीं हैं हमें। जानें क्या-क्या हैं ये शिकायतें।
1. भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का खेल
नौकरशाही से राजनीति तक, 2 जी से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स तक..भ्रष्टाचार की जडें यहां बहुत गहरी हो चुकी हैं। हजारों अन्ना हजारे आंदोलन करें, तब शायद बदलाव आ सके।
2. हॉरर किलिंग
आजादी के इतने वर्षो बाद भी जाति व गोत्र के नाम पर ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। विकास की राह में ऐसी बातें बहुत बडा रोडा हैं।
3. टैक्स की मार
आम जनता बढती महंगाई व टैक्स की मार से त्राहि-त्राहि कर रही है। आय पर टैक्स, बाहर खाने व सडक पर चलने का टैक्स..। हम भारतीयों की पूरी उम्र टैक्स चुकाने में ही खत्म हो जा रही है।
4. ट्रैफिक जाम
कितने फ्लाईओवर बनें, मेट्रो सेवाएं शुरू हों, सडकों पर भीड कम नहीं होती। घर से निकलने के बाद मालूम नहीं होता कि वापस कब लौटेंगे।
5. पर्यावरण की परवाह क्या
अपने घर में हम सफाईपसंद हैं, लेकिन बाहर कूडा फेंकने से बाज नहीं आते। प्लास्टिक व कचरा सडकों पर फेंकते हुए हमारे हाथ नहीं कांपते।
6. अजब लोकतंत्र की गजब व्यवस्था
आजादी के इतने वर्षो बाद भी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के अलावा आतंकवाद, जाति-धर्म जैसे बडे कारण हमें चिंतित करने को काफी हैं। लोकतंत्र राजनेताओं की बपौती हो चुका है। हम यही सोचकर खुश हैं कि लोकतंत्र में हैं और व्यवस्था तो खैर..रामभरोसे है।
7. विरोधाभासों का देश
एक ओर मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज तो दूसरी ओर न्यूनतम पब्लिक ट्रांसपोर्ट तक नहीं, एक ओर स्वयंवर, दूसरी ओर बलात्कार व दहेज-प्रथा, एक तरफ आस्था, दूसरी ओर अंधविश्वास, एक ओर विकास के नारे व दावे, दूसरी ओर कई गांवों में प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं..।
8. सिर्फअपनी मर्जी
आजादी का नकारात्मक पहलू यह है कि हम अपनी मर्जी को बहुत महत्व देने लगे हैं। अनुशासन व समय की पाबंदी का हमें खयाल नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करना हमें जन्मसिद्ध अधिकार लगता है।
9. गिले-शिकवे का देशअंत में एक बात हम सभी पर लागू होती है। हम व्यवस्था में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए पहलकदमी नहीं करना चाहते। भगत सिंह, अन्ना हजारे तो हम चाहते हैं लेकिन अपने नहीं-पडोसी के घर में
Sunday, 24 July 2011
God pls see your creations
Hey,bhagwan kya tune duniya banayi thi aisi ,
ho gyi h jaisi
Dekhega to teri aakhein bhi bhar jaayegi,
sharmsaar hokar teri nazrein bhi jhuk jaayegi,
tune banaya tha jo insaan ,
wo ban gya haiwan,
tune usko di thi samvednaye,
wo karne lga hatyaye,
pyaas buzhti h uski sirf laal khun se,
bhavnaaye tang h,
insan ki insan se hi ye anokhi jang h
karna chahta h hukumat,
pana chahta h saare jahan ki daulat,
hey,bhagwan ye tere banaye bande
ho gye h paiso ki lalach mein aandhe
na rishto-naato ko mane ye
na apne parayo ko jaane ye
rakhte h pair insani laasho par
krte hai julm apno par
na jaane ye kya jeetna chahta h
insan,insane ko maar ke
tune maara tha ek raavan uss yugh mein
hajaro ho gye h is kalyug mein,
tu na jaane kya kar rha h abhi
na banana dobara ye duniya kabhi,
tu dekega to bus yhi sochega,
ye duniya banayi thi kyu maine ye
YOUTH POWER
देश का नवजवान गर हाथ पर हाथ धर
देश को बचने गर आगे नहीं आएगा
आने वाली पीढ़िया भी कायर कहेगी उसे
वीरो की सहादते बेकार कर जाएगा
उर्र में जागाओ आज ऐसे वन्देमातरम
की एक सौ करोड़ कंठ गाये वन्देमातरम
ठान ले नवजवान गर,मुश्किल नही डगर
कि एक न एक दिन वो भी दिन आएगा
जब विश्व का हरेक देश नमन करेंगा हमे
ज़िन्दगी एक पहेली
लगी हैं ठहरी ठहरी सी बड़ी हैं गहरी गहरी सी
समझ में ही नही आती हैं ये क्यों हैं एक पहेली सी
कभी करती हैं अठखेली तो लगती हैं सहेली सी
जो रूठे तो लगती हैं बड़ी ही अलबेली सी
यादो के आशियाने से कभी किसी बहाने से
यह फिर से झेड़ देती हैं कुछ बिखरे तार पुराने से
कभी सपने गिराती हैं ये वक़्त के दामन पे
Tanhai
जब भी मोड़ आया जिंदगी में कोई उस वक़्त हमने खुद हो तनहा सा पाया |
क्या करे हम किसी रिश्ते की बात बेबसी के वक़्त तो साया भी अपना न आया |
जीते रहे छुपा कर अपने गम भी सभी फिर भी आखों को अपनी नम सा पाया |
जब भी मोड़ आया जिंदगी में कोई उस वक़्त हमने खुद हो तनहा सा पाया |
LIFE
दुनिया बड़ी अजीब हैं यहा कब कौन कहा बदल जाए कुछ पता नही हैं |
कभी कभी जो रास्ते मंजिल लगते हैं वो रास्ते में ही गुम हो जाते हैं |
कभी कभी जो अपने लगते हैं वो सपनो में ही गुम हो जाते हैं |
क्या हकीकत हैं यहा और क्या फ़साना हैं |
बहुत मुश्किल सा लगता ये जान पाना हैं |
ज़िन्दगी कभी कभी दो लफ्जो में बयाँ हो जाती हैं
और कभी कभी कम पड़ जाता शब्दों का खजाना ह...
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