Monday, 12 August 2019

आखिरी सच

जब तक मौत (मौन) नही आती,
हर इंसान जीवन को जीने के तरीके खोजता रहता है,
ऐसे रहूं ,वैसे रहूं ,ये करू, वो करूँ,
साम, दाम ,दंड ,भेद कुछ नही छोड़ता,
खुद के आगे बढ़ने को दूसरे को सीढ़ी बनाना ,
बुरा करके सबका अपना मतलब निकालना,
सिर्फ मैं ,मैं और मैं के पीछे भागता रहता है,
ये मेरा वो मेरा अब सब मेरे तब खत्म जब कोई ना मेरा मौत ही आखिरी बसेरा ,
तिनका उठा के नही ले जा पाता दुसरो का हक़ छीनने वाला ,
फिर क्यों इतनी उठपुथल मे जीवन भर जीता है ,
एक जीवन जीने के लिए क्यों लोगो के विश्वास को ,ईमान को,ठेस पहुचाता है,
लोगो को धोखा दे के क्या पाना चाहता है,
कहाँ जाना चाहता है,
यूँ तो इंसान चाँद पे भी घर बनाना चाहता है,
पृथ्वी को नारकीय करके अब वहां भी उत्पात मचाना चाहता है,
एक जीव एक आत्मा सब में है ये भूल के खुद को सर्वश्रेष्ठ या यूं कहें भगवान् कहलाना चाहता है,
जो इंसान तक नही बन पाता ताउम्र वो विधाता बन जाना चाहता है,
सब पे हुकूमत करके अपना लोहा मनवाना चाहता है,
आखिर इंसान यूँ खुदगर्ज बनके क्या पाना चाहता है,
साँसे तो सीमित है जिस दिन कनेक्शन कट तो सिर्फ एक ही आवाज आनी है कि माफ़ कीजिये ये सेवा स्थायी रूप से बंद है,
तब ना अंदर का मैं, ना बाहर का मै,
ना जीवन जीने की आपाधापी ,ना कोई कश्मकश, ना शोर ,
मिलता है तो सिर्फ शून्य सुन्न कर देने वाला मौन ,
एक ऐसी नींद जिससे कभी कोई ना उठ पाया,
बस यही तक जीना और मरने तक भी जीना ना सीख पाया.....................

Wednesday, 7 August 2019

रिश्ते

आप अपनी मौज मे रहो,
हम अपने मन मे रहते है,
क्यों रोज एक ही बात कहें,
बेहतर है चुप ही रहते है,
जरुरी नही नाव लेके उतर पड़े समुन्दर मे,
हम अपनी नांव नन्ही नदी पे ही चला लेते है,
जब दूजो को मोहलत ना हो तो छोड़ो क्या परवाह करना,
हम खुद बेपरवाह रहके क्यों दूजो की परवाह करते है,
क्यों बेवजह दूसरों से हम नाते निभाते है,
जब नाता बनता है तो झूठी उम्मीदे रखते है,
हम मन से जुड़ जाते लोग तो सिर्फ मोहब्बत करते है,
लोग दिल को दिमाग से खेलते है हम उनसे चाहत रखते है,
अफ़सोस है शातिर शख्स सभी फिर भी हम उन पे अपना वक़्त यूँही जाया करते है,
आप अपनी मौज मे रहो,
हम अपने मन मे रहते है ,
कुछ भी नही ,कुछ भी नही अब बस कुछ भी ना कहते है.....….............



जिंदगी या मौत

बादलो के ऊपर एक स्केटिंग करता हुआ शख्स नजर आता है जो अपनी मौज मे आगे बढे चला जा रहा है, इस बात से बिलकुल अंजान की पीछे आता मगरमच्छ उसके पावँ को अपने मुँह में समा लेना चाहता है, यही जीवन है आप आगे तो बढ़ते हो पर पीछे बैठा मगरमच्छ उतावला रहता है आपकी टांग पकड़ के उसे चबा जाने का बच गए तो जिंदगी वरना मौत .......

Tuesday, 6 August 2019

अश्रु पूरण श्रद्धांजलि

अभी तो जश्न की घडी थी कि अपने चले गए,
जिस बात को लेकर बरसो से तरसे थे जब वो मिली तो आप चले गए,
अभी तो खुल के ख़ुशी मना भी न पाए थे,
आप यूँ अचानक आँख आंसुओं से भर गए,
आप सबको छोड़ के अलविदा कर गए ......

माननीय सुषमा स्वराज जी आप सभी चाहने वालो के ह्रदय मे सदैव जीवित रहेंगी ........

माननीय सुषमा स्वराज जी की अंतिम विदाई

ललाट पटल पर चमकती लाल बिंदी ,
मांग मे लाल सिन्दूर ,
चेहरे पे चमकती निश्छल मुस्कान,
स्वयं भारतीयता की एक पहचान,
तेज तर्रार आवाज बोले तो सामने कोई टिक नही सकता,
एक बेहतरीन प्रवक्ता ,
ह्रदय से सच्ची देशभक्त,
एक संवेदनशील राजनेता,
बहुमुखी प्रतिभा की धनी,
राष्ट्र के लिए पूर्ण समर्पित
माननीय सुषमा स्वराज जी की अचानक मृत्यु घटना अत्यंत ही मार्मिक एवं ह्रदय विदरींन करने वाली है .....

Saturday, 3 August 2019

दोस्ती काफी नही एक दिन इस रिश्ते को बयां करने के लिए चंद अल्फाजो में पिरोया नही जा सकता ये एहसास फिर भी आप सबके लिए ...

बचपन में स्कूल की चौखट पे पहला कदम रखते ही जो साथ मिलता है वो होता है दोस्त,
माँ के बाद जो सबसे पहले हाथ थामता है वो होता है दोस्त,
साथ पढ़ना, साथ खेलना, साथ खाना, साथ हँसना रोना हर बात में साथ निभाता है वो होता है दोस्त,
कट्टी बट्टी से लेके सारी खट्टी मीठी यादें संजोने वाला, कभी आपकी बातें छिपाने वाला,कभी शिकायत लगाने वाला वो होता है दोस्त,
बचपन से लेके बड़े होने तक चेहरे भले ही बदल जाए पर दोस्तों की आदतें नही बदलती वो होता है दोस्त,
आपकी हर समस्या का हल बिना कुछ कहे भी आँखों में पढ़ जानेवाला वो होता है दोस्त,
कभी मन उदास हो आप रोना भी चाहे तो जो रोने भी नही देता वो होता है दोस्त,
आपके आँसुओ को हंसी मे बदलनेवाला शरारत करके हँसाने वाला, हर मोड़ पे ढाल बनके संभालनेवाला वो होता है दोस्त,
आपकी हर छोटी बड़ी बातों का राजदार, आपकी नादानी पर से पर्दा उठानेवाला,आपको सही गलत का आईना दिखाने वाला वो होता है दोस्त,
दोस्ती एक ऐसा रिश्ता जो मिलता तो है बेमोल पर होता है अनमोल वो होता है दोस्त ,
जीवन के सफर में अतीत के पन्नो में ही दर्ज सही पर अपनी यादों की महक से जीवन को महकाने वाला वो होता है दोस्त..........…........


आप सब चाहे दूर रहे पास रहे,
खास रहे या बनके एहसास रहे,
बस यही दुआ है ईश्वर से आप सभी खुश रहे कभी न उदास रहे।


मेरे जीवन मे आये मेरे सभी प्यारे मित्रो को मित्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये, (अंजलि)







Monday, 29 July 2019

जीवन मर्म

कविता क्या चंद शब्दो का हेर फेर हैं,
जीवन क्या धूप छावं का तालमेल हैं,
सुख दुख क्या बदलते वक़्त का एक खेल हैं,
कुछ हकीकत ,कुछ फ़साना सबका अपना अपना अफसाना,
बड़ा अनूठा बड़ा ही अद्भुत जीवन मर्म को जान पाना,
हो कुछ भी सबने माना है जीवन एक अनमोल खजाना,
 हाथ पसारे आते हैं सब हाथ पसारे सब को जाना .......

मनोदशा

मन से मन की बात को समझे नही यूँ अनकही ,
मन से मन के रास्ते है माना है उनके घर नही,
ताल्लुक अल्फाजो के मोहताज हरगिज है नही,
भ्रम समझते है जो इनको उनने कुछ समझा नही

Thursday, 25 July 2019

ऐ जिंदगी तुझे तो हम जी ही लेंगे ,
तुझे पाने पे तो रोते हुए आये थे हम पर इतना वादा है विदा होने पे तुझे हँसते हुए ही मिलेंगे,
तू ख़ुशी के पल दे या बेबसी के,
तू ख्वाहिशें दे या बेकसी दे,
तू जर्रा नवाज बन या नजरअंदाज कर,
तुझको अपने हौसलों की ताकत हम भी दिखा ही देंगे,
तू मौत से डरा मत मुझे जरा जी ले उससे भी जिंदादिली से ही मिलेंगे,
बस इतनी दुआ है कि मेरे जाने के बाद कोई ना रोये,
मुझको याद करके खुश हो मेरे अपने ,अपनी आँखे ना भिगोये,
जितनी शिद्दत से तुझे स्वीकारा है उतनी ही शिद्दत से तुझे अलविदा हम कहेंगे.........................

Wednesday, 24 July 2019

जी करता नीले नीले अम्बर की चादर ओढ़ लूँ,
दूर कही गगन से अपना नाता जोड़ लूँ,
उड़ जाऊं काले काले बादल बन के चहु ओर,
जा के बरसु बन के घटा सावन की घनघोर,
इंद्रधनुष के रंग चुरा लू हो जाऊं सतरंग,
शीतल मदमस्त पवन सी घुमू जैसे नाचे मोर,
बिजली जैसी कढ़ कढ़ कड़कू करू शोर ही शोर,.....…....................

Tuesday, 23 July 2019

भारत माँ की इस भूमि पे यूँ आज़ाद से लाल हुए ,
गर्भित है मन , पुलकित है मन , कैसे अपने इतिहास हुए,
निज स्वार्थ नही , सिर्फ राष्ट्र प्रेम की वेदी पे यूँ आप कुर्बान हुए,
आज के वर्तमान में लोग अपनी माँ को खून नही देते,
आप भारत माँ पे जान को हार दिए,
इस धरा के भूषण को ये पावन धरा भूल नही सकती,
अभिनन्दन आपका कोटिशः आप आज भी आज़ाद है
धरा, गगन ,पाताल, वायु ,जल कहाँ कैद हुआ करते है

महान देशप्रेमी वीर बलिदानी को आज उनके जन्मदिवस पे कोटि कोटि नमन ,जय हिंद ,जय भारत भूमि

Thursday, 18 July 2019

खुद को अब तुम चट्टान बना लो,
ना तोड़ पाये कोई ऐसी ईमारत बना लो,

आँसु दबे रहे आँखों में वो ही अच्छा है,
कुछ किसी से न कहे वो ही अच्छा है,
बेगानी सी दुनिया है ,बेआबरू होने से अपनी हद मे ही रहे वो ही अच्छा है,
कोई ना समझेंगे यहां किसी के मन का दर्द ,          दर्द आँखों से ना बहे वो ही अच्छा है.........

नंदियो की मौज सा मुझे अब खामोश बहना है,
कुछ नही कहना ,कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है,
जाना है शून्य की गहराई मे जाननी है अपने ही मन की थाह,
खुद की उथल पुथल मे अपने मन की सुनना है,
कुछ नही कहना, कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है,
जो पीछे छूट रहा सा रहा है उस लम्हे को हाथ बढ़ा के थामने का जिक्र क्या करे,
मेरे हाथ पसीजे है जिनमे सिर्फ पसीना ही पसीना है,
काई सी जम रही है मेरे उन विचारों पे जिनने समझा था कभी हर एक शख्स एक नगीना है,
मगर कहाँ कोहिनूर यूँ ही मिलना है,
कुछ नही कहना, कुछ नही कहना बस अब चुप ही रहना है..............






नंदियो की लहरें उथल पुथल हुई जा रही है,
ना जाने कौन सी बेचैनी है फिर भी बहे जा रही है,
कुछ कहना तो चाहती है पर सहे जा रही है,
तूफ़ान सा लायेगी इसकी ये ख़ामोशी जो घूट घूट ये पीयें जा रही है...........................
अपनी परछाई ही कहाँ साथ साथ चलती है,
तन्हाई के अंधेरो मे साथ छोड़ जाती है,
और किसी का फिर ऐतबार कैसा ??
कब साथ चलते चलते राह मोड़ ले,
आपके साये कि तरह आपका साथ छोड़ दे.........

Monday, 15 July 2019

जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है,
जब भी मैं खुद को समेट के खड़े होती हूं तू टांग अड़ाने क्यों चली आती है,
माना मेरी ख़ुशी तुझसे देखीं नही जाती ,
तो तू गम मे भी मेरी खिल्ली उड़ाने क्यों चली आती है,
लेन देन का खेल बंद कर दे अपना तुझसे मुझे कुछ नही चाहिए ,
जो तूने दे दिया वो संभाल नही पायी मै आज तक ,
तुझसे इससे ज्यादा उम्मीद नही मेरी,
जा पीछा छोड़ मेरा मुझे छोड़ दे मेरे हाल पे क्यों बार बार तू झूठी हँसी हंसा के रुलाने चली आती है,
जा ले जा अपनी सांसे भी अपनी धड़कन भी शांत रहने दे मुझे शोर सुनाने क्यों चली आती है,
जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है,
मुझे तू समझ बैठी क्या है??
 तू जो दे रही मे चुप करके सब स्वीकार करू,
 क्यों करू नही चाहिए तुझसे कुछ भी ले जा मुझे मुझ मे रहने दे तू जा,
जा मै क्यों न तेरा प्रतिकार करू,
जिंदगी तू बार बार मुझे सताने क्यों चली आती है ...............

Thursday, 4 July 2019

अपने सिद्धांतों और उसूलों की दीवार इतनी ऊँची खड़ी किये है हम डर लगता है कही दीवार गिरा दूँ तो मैं भी ना दरक जाऊं, गिरने का डर नही पर गिर के शायद कभी संभल ही न पाऊँ, यकीन खुद पे करने में भी डर लगता है कभी कभी हर विश्वास पे अविश्वास मिला ,

Friday, 21 June 2019

उधेड़ना

ज्यादा सीते सीते भी कपड़ों की सिलाई उधेड़ जाती है,
रेशा रेशा दूर होके जगह बना लेते कभी न भरने वाली,
जैसे ज्यादा सँभालते संभालते रिश्ते ...........

Monday, 17 June 2019

मेरी सखी

एक तू ही है जो मुझे खुद में समेट लेती है,
मेरे मन की बात को किसी से भी न कहती है,
जो कुछ होता है मुझमे अनकहा सा तू वो भी समझ लेती है,
एक तेरे साथ ने जिंदगी दी है हमे,
वरना जीवन का गुबार हमे डूबा देता,
हम किसी से कभी कुछ न कह पाते,
हमारा अपना ही दर्द हमे सुला देता,
मन जब भी व्यथित होता तेरे पास होती हूँ मैं
मन जब भी निराश होता है एक तूही होती है मेरे साथ मेरी आश बनके,
तूने भी मेरा साथ दिया है लम्हा लम्हा,
बहुत बार सम्भाल लिया हमे तनहा,
एक वादा तुझसे मांगती हूँ मै मेरा साथ मत छोड़ना,
जब भी मेरे कदम डगमगाये मुझे सँभाल लेना,
जोर से थामना हाथ की हम होश मे आ जाए,
फिर से तेरे सिवा किसी को अपने आप तक न ला पाये,
तू जीवन भर साथ रहना मेरे यूँही,
अल्फाज ना भी हो तो मेरे मौन को स्वीकार लेना,
इस दुनिया के भर्म जाल से हमे उबार लेना,
नही चाहिए मुझे इस बेग़ैरत दुनिया से कुछ भी,
यहां लोग सिवाय धोखे के दे भी क्या सकते है,

Thursday, 13 June 2019

प्राणवायु

रास्ते भर हवा की सरसराहट कितनी आवाज अलग सी धुन , अलग सी महक, अलग अंदाज, चाहे न चाहे वो अपने होने का अपने वजूद का एहसास कराती है ,बताती है इस कायनात में अकेला कोई नही मै हूँ लगती बेमुल्य पर हूँ बहुमूल्य मेरे बिना जीवन यूँ जैसे बिना आत्मा का शरीर ,  मैं एकदम सरल ,निश्छल, निष्कपट,अनवरत प्रवाहमयी मैं वो प्राण वायु जो कभी प्राण दे के जनम का रूप धारण करने वाली और कभी प्राण हर के मृत्यु का रूप धारण करके निष्प्राण कर देने वाली..................

Monday, 10 June 2019

सीमाएं

बचपन से ही कुछ सीमाएं तय की जाती है लड़कियों की , मान की ,सम्मान की, इज्जत की, इन्हें बेड़ियां ही कहेंगे आज के लोग पर ये बेड़ियां नही उस परिवार की आन है जहां जन्मी हो लड़की, ये आन आप की जिम्मेदारी तब बनती है जब आप के सर पे आधार(पिता का हाथ) ना हो, एक लड़की उस दिन अपनी जिम्मेवारी खुद अपने काँधे रखती है, जब उसे कोई टोकने वाला ना हो, स्वतंत्रता की भी सीमाए खुद ही तय करनी पड़ती है और बंदिशों की भी, अपने संस्कारो की भी और दुनिया की उँगलियों को उठ्ने से पहले तोड़ने की भी , ये सिद्धान्त खोखले हो सकते है अत्याधुनिक वर्तमान युग के लिए पर ये कभी असत्य नही हो सकते, बंदिशों के आगे भी जहान है ,खुला आसमान है, निर्द्वंद स्वछन्द पर ये स्वतन्त्रता उतनी ही स्वतंत्र है जितनी पानी खींचने वाली ड़ोर , ड़ोर के बिना कुँए से जल निकालना मुमकिन नही ,
 के  , उसी तरह बिना बंदिशो के निर्द्वन्द संसार में मान की उम्मीद करना भी सिर्फ एक कल्पना मात्र हैं/

Tuesday, 4 June 2019

व्याख्या

भरोसा
भ- भावनाओ का
रो-रोष रहित
सा-साथ

विश्वास
वि-विशेष
श्वा-साँसों का
स- संकलन 

दोनों का स्थान गर एक बार डगमगाया तो जिंदगी बोझ और साँसे घुटन बन के रह जाती है
                                                 अंजलि 

Wednesday, 29 May 2019

दिलासा


ना किसी से आश कोई,
न कोई उम्मीद,
ना कोई मेरा आपना,
ना साधु, ना फ़कीर,
रैनबसेरा दुनिया है ,
दो पल यहां निवास,
मुझे रहन दो तनहा ही ,
नही बनना किसी का खास..........

Tuesday, 21 May 2019

ख्वाब

वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें थी खुली पर हम ख्वाब में थे,
लाखों सवाल थे पर हम भावनाओं के ज्वार मे थे,
जी गये थे उस सपने को अपना समझ कर जिसकी कोई पहचान नही थी,
कोई अस्तित्व नही था,
समुंदर की लहरों की तरह बहे जा रहे थे कोई किनारा नही था पर इतरा रहे थे,
खुद को भूल के उस सपने को जिए जा रहे थे,
ये कैसी मनोस्थिति थी विचार से परे,
पता ही नही कौन सी दिशा में बहे,
पर फिर भी वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना,
आँखें खुली थी पर वो ख्वाब तोडना नही चाहते थे,
मन के भवर में कोई नांव छोड़ना नही चाहते थे,
बस जी रहे थे वो एक सपना,
लगा मानो जी गये हो पूरी उम्र उसमे

जो अपना तो नही था ,
पर था तो मेरी आँखों मे बसा एक अपना मेरा सपना,
वो चार दिन एक सपना,
बन चूका जैसे अपना...................

नकाब

खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है,
परते दर परते कितनी गहराई है,
आज तक आवाज भी न आयी है,
खुद को खुरचना आसान है,
लोगो के नकाब उतारना मुश्किल है,
पता नही क्या सच और क्या झूठ है,
लोगो को पहचानना मुश्किल है,
खुद को बयां करना आसान है,
लोगो को समझ पाना मुश्किल है...................

Sunday, 19 May 2019

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं,
जो किसी ने न कही हो मुंहजबानी लिखते हैं,
जिसमे न द्वंद हो न छन्द हो,
ना प्रीत हो न गीत हो,
न जीवन की हो सच्चाई,
ना कोई झूठा मीत हो,

चलो आज कोई कहानी लिखते हैं -2
जिसमे न दर्द हो न दुआ हो,
न मान हो न अपमान हो,
न स्वाभिमान हो, न अभिमान हो

चलो आज कोई कहानी लिखते है-2


हर हर महादेव

हर हर कर के हर लियो मेरे राग और द्वेष,
हमरे मन के सब विकार और सभी क्लेश
न हमपे है बुद्धि बल और न तुम जैसा त्याग,
हम जैसे दीनन का प्रभु ना करना तुम परित्याग,
मतलब के सब मित्र हैं,और सुखन के यार,
तेरी माया से रचित झणभंगुर संसार,
तेरे हाथ ही डोर है, तूही है भरतार,
मेरी जीवन की नावं के बनियो तारणहार


हर हर महादेव

Saturday, 11 May 2019

जमाना

कोई अपना नही जमाने में,
सब व्यस्त है एक दूजे को आजमाने मे,
कोई लगा किसी को गिराने में,
तो कोई लगा किसी का नामो निशान मिटाने मे,
सब व्यस्त है आजकल के जमाने मे,
कोई नही आता गिरो को उठाने को,
हर कोई बस लगा  h अपनी जगह पाने को........अंजलि
   

गुबार

बहुत दिनों से भरा ये गुबार अब फूटा,
किसी के लिए  सिर्फ शब्द हमारे लिए ये भार अब फूटा,
कोई समझे चाहे न समझे मुझे ,
मेरे अपने विचारों का प्रहार अब फूटा...............
                                               अंजलि

बहरूपिये

मन पे बोझ रखके नही जी सकते हम ,
आँशु ख़ुशी और गम के सब पी सकते हम,
वक़्त ने हमको  सब सहने की ताकत दी है,
ईश्वर ने हमे सब कहने की हिम्मत दी है,
जितने सबक जिंदगी ने सिखाये है हमे,
जिंदगी ने ना जाने कितने दांव   खेले है,
बहुत सहा, बहुत समझा बहुत देखी दुनिया,
यही लगा क्या हम ही दुनिया से अलबेले हैं,
लोग दूसरों का लहूँ पी के भी आज जिन्दा है,
मर गयी इंसानियत पर नही शर्मिंदा है,
गिद्द (पंछी)दुनिया में आज कम क्यों हुए,
उसका कारण क्योंकि इंसान ही गिद्द बन बैठा,
मरे हुए का भी जो मांस तक न छोड़ें वो कहाँ से इंसान कहलाने के काबिल हैं,
यही दुनिया है यहां सभी जीते हैं,
मुखोटे पहने हुए तमाम बहरूपिये है,
कैसे किसका नकाब उतरेगा,
कौन जाने कौन क्या निकलेगा??

                 अंजलि

मेरी नजर

वाहय दुनिया मुझे लुभाये भले ,
मेरे पैरों में अब भी बेड़ी हैं,
मैंने खुद को खुला नही छोड़ा,
जंजीर आज भी उतनी भारी पहनी है,
खुद को वापिस ले सकूँ दुनिया के तमाशे से,
खुद को संभाल सकूँ खुद से ही तराश सकूँ,
जरुरी नही है हर शख्श हम को पहचाने ,
हम अकेले ही सही हमको कोई ना जाने,
जैसे भी हैं हम खुद में जिन्दा हैं,
आत्मसंम्मान है हम्मे नही शर्मिंदा है,
नजरे उठा करके खुद को देख सकते है,
सर उठा के मुश्किलों का सामना कर सकते हैं,
सच है तो दुनिया से उलझ सकते हैं,
अपनी बातों को बेबाक कह सकते हैं,
खुद को जाने दुनिया को समझ सकते है.......

आजमाईश

                        
                         
पहचान और आजमाईश मे फर्क होता है,
तराजु पे खड़ा इंसान खुद को क्या समझे,
सामने वाले के दिल में क्या होता हैं,
तोल के सामान बेचेगा ,
कीमत लेके किसी को फेकेगा ,
उसके लिए मोल नही उसका कुछ ,
बस कुछ तौल और उसका ईमान सिर्फ पैसा है,
कौन जानेगा उसके मन की जो बिक गया बस जिसकी कोई कदर ही नही,

जिंदगी एक किताब




कदम जो आगे बढ़ जाए उनको मोड़ना मुश्किल होता है,
सही गलत के तराजु में तोलना मुश्किल होता है,
खुली किताब बनके जीवन सरल तो बन सकता है पर अक्सर उस किताब को जोड़ना मुश्किल होता हैं,
कुछ भाव कुछ अभाव जीवन का हिस्सा सही ,
जीवन अपना हैं किसी के मनोरंजन का हिस्सा नही ,
उड़ते हुए पन्ने हवा की चाल नही देखते बस उड़ जाया करते है,
बस या बेबस कही उलझे तो कही फट जाया करते है,
वापिस वो नही आते उस किताब का हिस्सा बनने ,
जरुरी है किताब बंद ही रहे जो कुछ अनकहा है वो उसी मे रहे,
यूँ तो कुछ भी नही हैं खास पर मेरा अपना हैं,
जो गुजर गया अच्छा हो या बुरा मेरा ही तो सपना हैं,
चोट खाने से डरते है तो संभल जाना अच्छा ,
अपने कदमो को रोक के ठहर जाना अच्छा,
पन्ने आँशु से न कही भीग जाए ,
जिंदगी से रूठ के कहि न गल जाए ,
वक़्त की धूप से धुंधले कही न पड़ जाए ,

Tuesday, 26 February 2019

24-02-2019 श्रीदामु तुम्हारी याद साथ रही आँखों मे नींद नही आयी तुम्हारी सूरत दिखती रही, मन बड़ा भारी भारी कुछ भी अच्छा नही लग रहा हैं , कमरा खाली , रसोई खाली तुम्हारी दूध की कटोरी और बिस्कुट  तुम्हे याद कर रहे है कही से आ जाओ ना सब सूना पड़ा तुम्हारा बॉक्स तुम्हारा कम्बल तुम्हारी तकिया सब बुला रही हैं तुम्हे, चलो साथ में धुप खाने चलते हैं, चलो घूमने चलते हैं श्रीदामु गाडी ख़ाली हैं तुम्हारे लिए मम्मी रो रही हैं उनकी गोद भी खाली पड़ी हैं फूलो जैसे नरम नरम पाँव वाला प्यारी सी सूरत वाला बात बात पे रुठनेवाला मेरा श्रीदामु कहा खो गया हैं,  भैया भी अपने कमरे में सोने नही गया तू जो नही था तुझे goodnight कहे बिना किसी को नींद नही आ रही है , तुम आ जाओ बस काश भगवान् के पास जाके तुम्हे वापिस ला सकते तो छीन लाते, इतनी गहरी नींद आयी है तुम्हे good good wala good morning shreedamu bhaiya ji uth uth jaao bhaiya dekho subah ho gyi 😢😢 तुम्हारे बिना ये पहली सुबह हैं, और अब रात दूसरी हैं कल तुम सोये ही नही आज में गुडमार्निंग नही बोल पायी , कल goodnight किये बिना ही चले गए तुम  कैसे  goodnight khte the hum log goodnight goodnight goodnight shreedamu raat ho gyi so jaa bacche , रात इतनी लंबी हो जायेगी सोचा नही था जाग जाओ बाबु ,श्रीदामु आ जाओ श्रीदामु श्रीदामु तेरा प्यारा प्यारा मुँह आ जा प्यारे श्रीदामु😢😢😢😢😢😢😢 मन बहुत उदास हैं तुम्हारे जाने के बाद लग रहा हैं  हम तुम्हारे लिए ही जी रहे थे क्या या तुम्हारे प्यार से बंधे थे आज वो बंधन याद रह हैं श्रीदामु तु हमे बहुत  सता रहा हैं, आ जा ना टेढे मेढ़े कूदता फाड़ता सब से लड़ा के आ जा न वापिस miss u shreedamu क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा काश मेरे श्रीदामु तुम्हे वापिस ला सकते फिर से प्यार करते और तुम्हारा प्यार पा सकते नही पता हमे तुम कहाँ खो गए कभी न जागनेवाली नींद में क्यों सो गए हो पर बस इतनी विनती हैं मेरी भगवान् से मेरे श्रीदामु को प्यार से रखना जहां रखना उसे ढेर सारी खुशियाँ मिलनी चाहिए, घूमने को गाडी जरूर देना उसे भगवान् उसको राजा बना के रखना वो कोई राजा ही था सबके दिलो पे राज करता रहा आज खाली कर गया हम सबको .....................

आज चार दिन हो गए श्रीदामु पर घर आज भी वीरान हैं सूनापन आज भी वही है ,मन अभी भी भारी भारी हैं , तेरी याद अब तलक जारी है , श्रीदामु तेरी गाडी   ढ़की आज पर तू देखने नही आया बैठने की जिद्द भी नही की तूने न घूमने के लिए दौड़ के मम्मी को मनाया अच्छा नही लगा तेरा यूँ रूठ जाना हम सब को यूँ तनहा छोड़ जाना रसोई का वो कोना आज भी खाली हैं आज भी ऐसा लगता है कि तू आएगा फिर से अपने नन्हे नन्हे पाँव को दूध की कटोरी मे डाल के मुझ पे छीटे डालेगा, तुझे चिढ़ाने पे अपने दांत मेरे हाथों में चुभोएगा, पर नही तू चला गया और जानेवाले वापिस नही आया करते सिर्फ सताती है उनकी यादें और तू यूँ जो अचानक चला गया कभी न कभी कही न कही इस जनम न सही अगले जन्म ही तू मिला तो बहुत लड़ाई होगी तुमसे

Monday, 25 February 2019

श्रीदामा की यादें

ये कैसा रिश्ता साँसों का देह से साँस निकल जाते ही सिर्फ लाश शेष,
चलता विरता जीव निकल गए प्राण बचे बस यादों के अवशेष ,
काश पता होती ये बात सबको की किसको कितना जीना हैं,
साथ छोड़ के हाथ निकल जाता है हर लम्हा,
कह नही सकते तेरा जाना कर गया कितना तन्हा,
सब कुछ तो हैं वही,वही दिन और वही है रात,
बस तू साथ नही रह गया,रह गयी साथ तुम्हारी बात,
यादों के इस जहाज का अब डूबना मुश्किल है,
मृत्यु अटल सत्य है पर स्वीकारना मुश्किल है,
यादें इतनी है कि खुद को उबारना मुश्किल हैं,
कुछ लोग दुनिया के लिए मामूली हो सकते हैं,
पर किसी के लिए वो पूरी दुनिया होते हैं....................



Sunday, 25 February 2018

शख्सियतें

कुछ नाम है जिनकी हस्ती हैं,
कुछ पे ये दुनिया हँसती हैं,
कुछ ऐसे हैं जो मिट ना पाये,
कुछ ऐसे हैं जो गुमनाम से है,
कुछ इंतिहासो का हिस्सा है,
कुछ केवल कोरा किस्सा हैं,
कुछ वक़्त के हाथों बिक न सके,
कुछ ईमान के रहते झुक न सके,
नाम उनका भले गुमनाम सही उनका ईमान तो जिन्दा हैं,
वो वक़्त भी उनसे जिन्दा था ये लम्हा भी उनसे जिन्दा हैं,
उनकी शहादत का किस्सा अब भी जेहन में जिन्दा हैं,
इंसान जो हक़ का लड़ न सका अब तक वही शर्मिंदा हैं,
इतिहास तो कल भी ठहरा था ,
इतिहास तो अब भी ठहरा हैं,

Saturday, 6 May 2017

हमारा गर्व......हमारा गौरव ....हमारे रक्षक देशभक्त सिपाही

गर्व से गर्दन हम उठाते हैं तब,
जब सरहदों पे लोग जान गवांते है,
अपने वतन की मान रखने को ,
वो अपना सर्वश्व लूटाते हैं,
नही हैं मोल कुछ इनका उनकी नजर में जो घर पे बैठकर सिर्फ अपनी जुबान चलाते है,
सीने पे लगनेवाली गोली मोहलत नही देती उन्हें कुछ सोचने की,
मौत सर पे खड़ी होती हैं हर घड़ी और वो सीमाओं में खड़े भी सीमाओं में बंधे .......

क्या हैं समाज ज्ञान ?????😢

हम सबको बचपन में moral science पढ़ायी जाती है,
बड़ी बड़ी बातें सिखायी जाती हैं,
पर बड़े होने पे हमे उन morals पे चलने की स्वतंत्रता नही मिलती हैं,
वो बाते सिर्फ पढने तक ही रहती है जीवन में उतारी नही जाती,
सभी नियम उलटे से बेउत्तर ,बेमायने से लगते हैं,
जब गिरते हुए को संभालने की जगह उसे कुचलकर निकल जाने को हम समाज की रीत कहते हैं,
यही होता हैं सब ऐसा ही करते हैं ,
गलत बात को भी ठीक कहते हैं???
किसी की मदद करने को जुर्म समझा जाता हैं,
मरते हुए को बचाने की नही मरता  छोड़ जाने की सलाह दी जाती हैं,
फिर क्यों society science हमे बचपन में पढ़ाई नही जाती,
क्यों बेवकूफ समझा जाता हैं उन्हें जो दूसरों के काम आते हैं,
भले ही नही मिलता कुछ पर आत्मसंतुष्टि तो पाते हैं..............

Thursday, 27 April 2017

क्या हम हिंदुस्तान में ही रहते हैं????????

हिंदुस्तान का नाम बदल के लोग इंग्लिश तान क्यों नही कर देते है, सब को जब इतनी इंग्लिश पसंद हैं तो हिंदी भी इंग्लिश मैं क्यों नही बोल लेते , माना कि वो एक भाषा हैं , पर क्या हम विदेशी हैं, जो हर समय सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाला सभ्य कहलाये, और हिंदी बोलने वाला पिछड़ा हुआ और देहाती , ये कहा कि स्वतंत्रता हैं कि हम अपने ही हिंदुस्तान में रह कर हिंदी नही बोल सकते , क्यों बंदर बनके सिर्फ नक़ल ही करते हैं सब? क्या अपनी कोई पहचान हैं ही नही , अपनी मातृभाषा का अपमान स्वयं ही क्यों क्या अपनी भाषा का कोई मूल्य कोई सम्मान नही हैं??????

अपने बच्चो को इंग्लिश माध्य्म में सभी पढ़ाते हैं क्यों सिर्फ इंग्लिश ही उन्हें स्मार्ट बना सकती हैं, फिर जब बच्चे विदेशियों जैसा हाल करते हैं तो क्यों बुरा लगता हैं, वो भी अपने पिछड़े हुए हिंदुस्तानी माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाते हैं , फिर क्यों बुरा लगता हैं, अब अंग्रेजी सीखना और अंग्रेज बनाने में हम फर्क ही भूल गए हैं तो फिर अपने हिंदुस्तानी संस्कारो का रोना क्यों रोते हैं बाद में जब बच्चा बना इंग्लिशतानी तो क्यों कदर करेगा अपने रिश्तों की, अपने मूल्यों की , बड़ो के मान की, आदर की क्यों जैसा आप उन्हें बना रहे हैं वो वैसा ही तो कर रहे हैं न ??????

Sunday, 23 April 2017

नन्ही कश्तियाँ............

बारिश की बूंदे हमने भी खेली थी ,
कागज़ के चंद टुकडो से कश्तियाँ बनायीं थी ,
कुछ भीग के डूब गयी ,
कुछ किनारे पर ठहर गयी ,
कुछ दो कदम ठहरी भी ,
पर ये खेल बस पल दो पल का ही था ,
२ पल मन को बहलाने का खेल ,
हँसाने -रुलाने का खेल ,
पल २ पल में ही जब बदल जाते हैं सारे मंजर ,
तो ज़िन्दगी भी लगने लगती हैं सिर्फ एक खेल ,
एक ऐसा खेल जिसके खिलाडी तो हम हैं ,
पर चलानेवाला कोई और हैं ,
उस काठ के घोड़े की तरह की तरह जो चलता भी हैं ,
और पहुँचता भी कही नही |

Sunday, 26 March 2017

जाल......

बड़ी बड़ी बातों का बड़ा बड़ा जाल,
सीधे बने लोगो की शतरंज सी चाल,
जैसी दिखे दुनिया वैसा सच्चा नही हाल,
भ् म जाल,माया जाल, रिश्तो का व्यापार,
इन सब में घिरा हैं इंसान का जीवनकाल,............

Saturday, 25 March 2017

जिद्दी चिराग....

आँधियों देखते हैं तुममे भी कितना दम हैं,
चिराग आज भी तेरी ही जद में रोशन हैं,
है तू जिद्दी तो नन्हा चिराग क्या कम है,
टिकेगा वो ही जिसमे अंत तक जूझने का दमखम हैं..........................

Friday, 24 March 2017

ये कैसी वजह ......

हजारो नाम है किरदार के
हजारो शख्सियते भी है,
कोई अपना कहता हैं हमे,
कोई दुश्मन मानता भी हैं,
दोनों ही रिश्ते हैं,
मगर इनकी हदें भी है,
कहने को तो ये दुनिया बहुत बड़ी हैं,
मगर ये घूमती रहती हैं क्यों इसकी वजह भी हैं,
ये वापिस फिर उसी मोड़ पे लाती है इंसान को ,
जहां पे मौत मिलती जिंदगी से गले भी है,..........

Monday, 20 March 2017

हवा के साज पे लोगो का अंदाज

हवा की दिशा के साथ बहने वाले लोग
हवाओं की दिशा बदलते ही अपना रास्ता बदल लेते हैं,
उलटी हवा में उन्हें टिकना नही आता,
उसूलों की चटनी बनाके खा जाते हैं,
बेईमानी के शरबत के साथ पी जाते हैं अपना आत्मसम्मान,
रह जाते हैं मार के अपनी आत्मा,
खुद को जिंदा बताते हैं,
पर उन्हें जीना नही आता,
दफ़न कर देते हैं अपनी मन की हर आवाज को मन में,
कि बेबाकी से उनको जख्म को सीना नही आता,
सर को गुरुर से उठा के चलते हैं,
उन्हें ईश्वर के आगे सर झुकाना नही आता,
बेतालों की तरह नाचते हैं दुनिया की हर लय पे,
कि जिंदगी की सरगम को पहचाना नही आता
........

Sunday, 12 March 2017

हौसलें की ताकत........................

लोग ऐसे  भी हैं दुनिया में जो मर मर के भी जीते हैं ,
अपने सारे दुखो को पानी की तरह पीते हैं ,
पर हौसलों की ताकत हैं कि सब सहकर भी हँसते हैं ,
और अच्छे दिनों कि कामनाये रखते हैं ,
उम्मीद हैं उन्हें आज भी उस दिन कि जो आज तक नही आया ज़िन्दगी में उनकी ,
नही मिल पाया खुशियों का एक पल भी सुकून से फिर भी करते हैं इन्तजार
नही मानते ज़िन्दगी से हार

Friday, 10 March 2017

जय सिया राम, भगवा आ ही गया

केसर जितना पवित्र और सुगंधित है
केसरिया रंग भी सद भाव और शान्ति का प्रतीक हैं
अब तो रंग केसरिया ही छा गया
होली आयी तो पूजा को कमल भी खिल के आ गया
रंगों रंग केसरिया
होली भई केसरिया ...............जय सिया राम

Saturday, 8 March 2014

टेढ़े मेढ़े रास्ते

टेढ़े मेढ़े रास्ते हैं गिरना हैं, सभलना हैं ,
चोटें भी लगेगी पर फिर भी हमे चलना हैं ,
इन रास्तो पे चलते और संग संग चलते कुछ और अजनबी हैं ,
कुछ दूर तक हैं अपने कुछ को बीच में मुड़ना हैं ,
अनजान रास्तो पे अनजान मुश्किलो से हमे खुद ही उबरना हैं ,
ये वक़्त न रुका हैं , न जीवन चक्र ही थमा हैं ,
जब तक हैं जान बाकी साँसों को तो चलना हैं .........

Sunday, 24 March 2013

हंसी या सजा

मुस्कुराने की हमें हमेशा सजा मिली ,
एक हंसी भी हजार आसुओं के साथ मिली ,
ये हमारी किस्मत को अच्छी सौगात मिली,
चंद पल मुस्कुराना चाहा, तो आंसुओं की बरसात मिली |
ढूंढने चले जब हम अपने हिस्से की खुशियाँ,
हमे बदले में हमेशा वक़्त की मार मिली |
नही उम्मीद नही आस न कोई किस्मत से गिला ,
सोच लेंगे जो किस्मत में था सिर्फ वही मिला ,
हो सकता हैं किस्मत ही लिखी गयी हो आंसुओं से हमारी
तभी हर हालत हर बात पे आंसू ही मिला |

Sunday, 10 February 2013

इंसानी मौत का यह कैसा मजाक

इंसान की मौत की जिम्मेवारी  एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारॊप लगाते ये  लोग ,
उनकी मौत पर भी जुर्माने की मोहर लगाते  ये लोग ,
क्या यह इंसानी जान पैसे में खरीदी जा सकती हैं क्यों इंसान की मौत का भी मजाक बनाते  ये लोग ,
जुर्माने की आड़ लेकर अपनी राजनीती खेलनेवाले क्यों दिखावे का शोक दिखाते ये लोग ,
अखबारों के लिए हैं ये महज बस एक खबर हादसों के नाम पर अपनी भुनाते ये लोग |
मन को  व्यथित और आक्रोशित कर जाते ये लोग ।
उनसे जानो जिनके घर के चूल्हे ठन्डे पड़ गये जिनके अपने कभी  वापिस न आने वाली राह पर चढ़ गये ,
दर्द उनका हम महसूस भी नही कर पायेंगे और मरहम लगाने का उन पर ढोंग रचाते  ये लोग ।


Monday, 16 January 2012

बदलाव

लोग बदलते हैं ऐसे जैसे कागज़ के रंग ,
जो पानी पड़ने पर धुंधले हो जाते हैं ,
उड़ जाती हैं महक नकली ,
जब असली धूप के साए मिल जाते हैं ,


बदलाव

लोग बदलते हैं ऐसे जैसे कागज़ के रंग ,
जो पानी पड़ने पर धुंधले हो जाते हैं ,
उड़ जाती हैं महक नकली ,
जब असली धूप के साए मिल जाते हैं ,


Saturday, 26 November 2011

इंसान

अमीर और  अमीर , और  अमीर होता ही गया |

 गरीब अपनी गरीबी का  बोझ  ढोता  ही गया  |

 बढता रहा यह बोझ ज्यों ज्यों ज़िन्दगी बढ़ी | 

बढती रही कशमकश ज़माने के साथ आने की|

 बदलते वक़्त से कदमो के तालमेल बैठाने की |

 पर परवाह भी थी उसे अपने आप  से नज़र मिलाने की | 

रिश्ते , नाते ,शर्म और ईमान  बिक गये | 

अमीर बनने के खातिर कितने इंसान बिक गये |

 जो बिक न सका दुनिया के इस बाज़ार में,

 ऐसे  इंसान के अपने ही घर , मकान बिक गये 



नन्हा सा बीज

मैं नन्हा सा बीज, इस स्थुल जगत से घबराया


तब धरती माँ ने अपने प्यार भरे गोद में सुलाया

एक दिन हवा के झोंके ने मुझे पुकारा


पर उस ममतामई गोद को छोड़ने में मैं हिचकिचाया


फिर बारिश की की बूंद ने छींटे मार कर मुझे जगाया


पर फिर भी मैं वहीँ पड़ा रहा अलसाया


सुरज की किरणों ने मुझे ललकारा


गुस्से से आवाज़ देकर पुकारा


धीरे धीरे तब मैं ऊपर आया



अपनी जड़ों को धरती में हीं जमाया

बीज से अब मैं पौधे के रूप में आया|




अब हमे चाहिए आपका थोरा सा प्यारा |

थोरा सा ख्याल , थोरी सी देखभाल 

जिससे हम भी बड़े हो सके | 

पोधे से हो सके एक वृक्ष तैयार |

जो आपको कल देगा शीतल छाया 
,
स्वछ हवा और गर्मी में ठण्ड का साया |


Friday, 25 November 2011

नन्ही चिड़िया क्या कहती हैं





मेरी हैं क्या भूल उस ईश्वर की रचना मैं भी ,

जिसने तुमको मानव का जन्म  दिया,

 तुमको क्या हक हैं मुझसे मेरी ज़िन्दगी लेने का,

हमारा घर भी झीना हमसे,

 दिया मौत का धुआं हमको ,

क्यों ऐसा कर रहे हो तुम ए इंसान ,

क्या ऐसा कर के तुम जी पाओगे,

क्या बिना पेड़ो के इस प्रदूषित हवा,

मैं तुम सांस ले पाओगे ,

फिर क्यों कर रहे हो खुद से खिलवाड़ क्या हैं

 तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब,

मैं तो बस एक नन्ही चिड़िया हूँ जनाब,

नन्ही चिड़िया

Monday, 24 October 2011

आंसुओ की आहट


मुस्कुराहटो में भी आंसुओ की आहट हैं ,
 ये निगाह उनको छिपाने की कोशिशो में हैं ,
कब तलक छिपेगा गम का दरिया ,
 वो तो अब पलकों के किनारों पर हैं
आखें नम हो तो मुस्कराहट कैसी ,
 दिल का दर्द चेहरे की रहगुजर में हैं
पनाह मिलती नही  जहाँ में कही पर इसको ,
 ये तो  दरिया की तरह बहने की कोशिशो में हैं |
निगाह इसको भला कब तलक छुपाएगी,
 झलझला कर बहेगा यह एक दिन
तूफ़ान कब बंध सका सहिलो से हैं ,


Sunday, 23 October 2011

say no to crackers

दिवाली ख़ुशी का और रोशनी का त्यौहार हैं | क्या इसमें पटाखों की आग जरुरी  हैं हजारों रुपये खर्च करके  विनाशकारी  सामानों को खरीदना क्या समझदारी हैं | पटाखों  के रूप में  एक तरफ तो हम अपने पैसो में आग लगते हैं और दूसरी  तरफ  शोर और धुएं से अपने आसपास के लोगो और वातावरण और अपने आप को भी हानि  पहुचाते हैं | दिवाली रोशनी का पर्व हैं या धमाको का क्या बिना धमाको के खुशियाँ जाहिर नही की जा सकती हैं | इन प्रदूषक धमाको को करके हम क्या दिखाना चाहते हैं सामाजिक हैसियत का एक नाटक की किसने कितने ज्यादा पैसो में आग लगाई | इस होड़ में किसने किस्से ज्यादा से ज्यादा अपने आप को और दुसरो को  नुक्सान पहुचाया | जिस चीज के उपयोग से हर हाल में सिर्फ  हानि ही सुनिश्यित हैं तो उसका उपयोग करना सिर्फ बेवकूफी मात्र ही हैं |  जो पैसे हम पटाखों में आग लगाकर  बर्बाद  करते हैं | क्या उन पैसो  को  गरीबो पर खर्च नही कर सकते  जिससे वो भी  दिवाली में थोड़ी  खुशियाँ मना सके | 

Friday, 9 September 2011

सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां


सारे जहां से अच्छा..गुलिस्तां को क्या हुआ..
बताएं-
1. रिश्ते ही रिश्ते
अपने भारत में सबसे ज्यादा प्यारी चीज हैं हमारे रिश्ते। मां-पिता-बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मामा-मामी, दीदी-जीजाजी, देवर-भाभी, मौसा-मौसी...रिश्तों की लंबी लिस्ट है हमारे यहां। सिर्फ अंकल-आंटी कहने से यहां बात नहीं बनती।
2. हम साथ-साथ हैं
भारतीय परंपरा में अभी भी संयुक्त परिवारों के लिए जगह है। माता-पिता अपने बच्चों ही नहीं, पोते-पोतियों (और मौका मिले तो पडपोते-पोतियों) तक की परवरिश करते हैं।
3. जश्न और उत्सवधर्मिता
कोई फर्क नहीं पडता कि क्या तारीख है, हमें तो जश्न मनाने का बहाना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई..सबके त्योहार मनाते हैं हम।
4. अतिथि देवो भव..
मेहमां जो हमारा होता है-वो जान से प्यारा होता है..., इस गीत का संदर्भ लें तो हम अपने घर ही नहीं, देश में भी आने वाले लोगों की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडते। आखिर ऐसा क्यों न हो, हमारी संस्कृति में अतिथि का स्थान देवतुल्य माना गया है।
5. मैं चाहे ये करूं-मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्जी क्या यह कम खुशी की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ द पीपल, बाय द पीपल, फॉर द पीपल। यह बात हमारे लोकतांत्रिक देश पर पूरी तरह लागू होती है। हमें धर्म, शिक्षा, अभिव्यक्ति, एक से दूसरे स्थान पर जाने सहित कई अधिकार मिले हुए हैं।
6. विविधता में एकता
रंग-बिरंगी है संस्कृति हमारे देश की। इसीलिए तो कहा गया है, कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी। लेकिन विविधताओं के बावजूद इस देश में एकता है।
7. बैंड बाजा बारात
इस रंगीन देश का हर आयोजन रंगीन है। जन्म, शादी व संस्कार...जिंदगी के हर पडाव पर मौज-मस्ती, धूमधडाका हमारी फितरत है।
8. प्रतिभाओं का देश
नए विचारों व प्रतिभाओं की भारत में कोई कमी नहीं। यहां के चुनिंदा दिमाग विश्व भर में अपने ज्ञान का परचम लहरा रहे हैं। कोई भी क्षेत्र हो, हमने हर जगह अपनी काबिलीयत प्रमाणित की है।
9. परोपकार है परमधर्म
दुख किसी का भी हो, हम उसमें शामिल होते हैं और मदद का हाथ आगे बढाने से पीछे नहीं हटते। पडोसी धर्म निभाना हो या सामाजिक धर्म.., इंसानियत अभी बाकी है यहां।
10. थोडे में गुजारा होता है
हम भारतीयों को मंदी का खतरा नहीं होता। हमें तो कबीरदास सिखा गए हैं, साई इतना दीजै जामे कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए..। कम से कम संसाधनों में जीने की जिद हम भारतीयों में पैदाइशी होती है।
अपने देश से प्यार है तो शिकायतें भी कम नहीं हैं हमें। जानें क्या-क्या हैं ये शिकायतें।
1. भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का खेल
नौकरशाही से राजनीति तक, 2 जी से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स तक..भ्रष्टाचार की जडें यहां बहुत गहरी हो चुकी हैं। हजारों अन्ना हजारे आंदोलन करें, तब शायद बदलाव आ सके।
2. हॉरर किलिंग
आजादी के इतने वर्षो बाद भी जाति व गोत्र के नाम पर ऑनर किलिंग की घटनाएं हो रही हैं। विकास की राह में ऐसी बातें बहुत बडा रोडा हैं।
3. टैक्स की मार
आम जनता बढती महंगाई व टैक्स की मार से त्राहि-त्राहि कर रही है। आय पर टैक्स, बाहर खाने व सडक पर चलने का टैक्स..। हम भारतीयों की पूरी उम्र टैक्स चुकाने में ही खत्म हो जा रही है।
4. ट्रैफिक जाम
कितने फ्लाईओवर बनें, मेट्रो सेवाएं शुरू हों, सडकों पर भीड कम नहीं होती। घर से निकलने के बाद मालूम नहीं होता कि वापस कब लौटेंगे।
5. पर्यावरण की परवाह क्या
अपने घर में हम सफाईपसंद हैं, लेकिन बाहर कूडा फेंकने से बाज नहीं आते। प्लास्टिक व कचरा सडकों पर फेंकते हुए हमारे हाथ नहीं कांपते।
6. अजब लोकतंत्र की गजब व्यवस्था
आजादी के इतने वर्षो बाद भी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के अलावा आतंकवाद, जाति-धर्म जैसे बडे कारण हमें चिंतित करने को काफी हैं। लोकतंत्र राजनेताओं की बपौती हो चुका है। हम यही सोचकर खुश हैं कि लोकतंत्र में हैं और व्यवस्था तो खैर..रामभरोसे है।
7. विरोधाभासों का देश
एक ओर मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज तो दूसरी ओर न्यूनतम पब्लिक ट्रांसपोर्ट तक नहीं, एक ओर स्वयंवर, दूसरी ओर बलात्कार व दहेज-प्रथा, एक तरफ आस्था, दूसरी ओर अंधविश्वास, एक ओर विकास के नारे व दावे, दूसरी ओर कई गांवों में प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं..।
8. सिर्फअपनी मर्जी
आजादी का नकारात्मक पहलू यह है कि हम अपनी मर्जी को बहुत महत्व देने लगे हैं। अनुशासन व समय की पाबंदी का हमें खयाल नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करना हमें जन्मसिद्ध अधिकार लगता है।
9. गिले-शिकवे का देशअंत में एक बात हम सभी पर लागू होती है। हम व्यवस्था में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए पहलकदमी नहीं करना चाहते। भगत सिंह, अन्ना हजारे तो हम चाहते हैं लेकिन अपने नहीं-पडोसी के घर में